वहीं इस सूची में फ्रांस दूसरे स्थान पर है, जिसने भारत को कुल हथियारों का 33% आपूर्ति की। यह पहला मौका है जब फ्रांस ने इतनी बड़ी हिस्सेदारी हासिल की है। अमेरिका, जो एक समय भारत का प्रमुख रक्षा साझेदार माना जा रहा था, महज 13% हिस्सेदारी के साथ तीसरे नंबर पर है। वहीं, इज़रायल 9% और दक्षिण कोरिया 3% के साथ क्रमश: चौथे और पांचवें स्थान पर हैं।
रूस पर अब भी भरोसा
भारत और रूस के बीच दशकों पुराना रक्षा सहयोग है। मिग-29, सुखोई-30 जैसे लड़ाकू विमान, टी-90 टैंक, और एस-400 मिसाइल सिस्टम जैसे आधुनिक हथियारों की आपूर्ति रूस से हुई है। भारत आज भी अपने सैन्य प्लेटफॉर्म के बड़े हिस्से की मेंटेनेंस और अपग्रेडिंग के लिए रूस पर निर्भर है।
फ्रांस की बढ़ती भूमिका
फ्रांस की भूमिका हाल के वर्षों में तेज़ी से बढ़ी है। राफेल लड़ाकू विमानों की डील, और भारत की नौसेना के लिए बनाए गए स्कॉर्पीन सबमरीनों ने फ्रांस को भारत का एक प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ता बना दिया है। हाल ही में भारत ने फ्रांस के साथ राफेल-एम की भी डील की हैं।
अमेरिका क्यों पिछड़ा?
एक समय अमेरिका से भारत की रक्षा साझेदारी को नई ऊंचाईयों पर ले जाने की बात हो रही थी, लेकिन राजनीतिक समीकरणों और तकनीकी निर्भरता की शर्तों के चलते भारत की खरीदारी सीमित रही। हालांकि अमेरिका से भारत को C-17 ग्लोबमास्टर, अपाचे हेलीकॉप्टर और P-8I टोही विमान जैसी आधुनिक तकनीकें मिली हैं, लेकिन उसकी कुल हिस्सेदारी में गिरावट आई है।
इज़रायल और दक्षिण कोरिया की हिस्सेदारी
इज़रायल भारत को निगरानी उपकरण, ड्रोन और मिसाइल प्रणाली जैसे हथियार मुहैया कराता है, जो सीमित मात्रा में लेकिन अत्यधिक तकनीकी रूप से उन्नत हैं। वहीं, इजरायल के अलावे दक्षिण कोरिया के साथ भी भारत की साझेदारी अच्छी रही हैं।
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