रूस से ये 4 हथियार खरीद सकता है भारत? चीन सन्न

नई दिल्ली। भारत और रूस की रक्षा साझेदारी दशकों से मजबूत रही है, जो समय के साथ और भी गहरी होती जा रही है। भारतीय सेना के हथियार और उपकरणों में रूस का योगदान लगभग 50% से अधिक है, जो दोनों देशों के बीच रणनीतिक विश्वास और सहयोग का प्रमाण है। इस साझेदारी का महत्व उस समय और बढ़ गया जब पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए और रूस से व्यापार करने वाले देशों को भी धमकियाँ दीं। इसके बावजूद भारत ने अपनी रक्षा आवश्यकताओं के लिए रूस के साथ संबंधों को कायम रखा और उन्हें और मजबूत किया।

Su-57 लड़ाकू विमान: भारतीय वायु सेना की ताकत में इजाफा

सेवानिवृत्त मेजर माणिक एम जॉली के अनुसार, भारतीय वायु सेना को रूस के Su-57 स्टील्थ मल्टी-रोल लड़ाकू विमानों से भारी लाभ होगा। यह विमान आधुनिक तकनीक और अति उच्च गति के साथ लड़ाकू क्षमताओं को बढ़ाएगा। Su-57 के शामिल होने से भारतीय वायु सेना की सामरिक ताकत में सुधार होगा, खासकर उसकी सीमाओं पर बढ़ती चुनौतियों के मद्देनजर। यह विमान न केवल रक्षा क्षमताओं को बढ़ाएगा, बल्कि भविष्य में भारत की हवाई श्रेष्ठता को सुनिश्चित करेगा।

ब्रह्मोस II और हाइपरसोनिक मिसाइलें: सामरिक श्रेष्ठता का नया अध्याय

भारत और रूस मिलकर ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली के अगले संस्करण पर काम कर रहे हैं, जिसमें 3M22 जिरकोन जैसी हाइपरसोनिक मिसाइलों का विकास शामिल है। इस मिसाइल की रैमजेट और स्क्रैमजेट प्रणोदन प्रणाली इसे अत्यंत तेज़ और कुशल बनाएगी, जिससे सीमा पर दुश्मन के लिए जवाबी कार्रवाई तेज और सटीक होगी। इस तकनीक के माध्यम से भारत अपनी रक्षा और हमले की क्षमताओं को एक नए स्तर पर ले जाएगा।

हाइपरसोनिक ग्लाइड वाहन और R-37M मिसाइलें: अगली पीढ़ी की रक्षा तकनीक

हाइपरसोनिक ग्लाइड वाहनों (HGV) के विकास में भारत और रूस को साथ मिलकर काम करना होगा ताकि दोनों देशों की सामरिक जरूरतें पूरी हो सकें। बेंगलुरु के सैन्य विशेषज्ञ गिरीश लिंगन्ना के अनुसार, रूस की R-37M जैसी हाइपरसोनिक मिसाइलों का अनुभव भारत को अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण मदद दे सकता है। इस साझेदारी में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और स्थानीय उत्पादन पर भी जोर दिया जाएगा, जिससे भारत अपनी आत्मनिर्भरता की दिशा में तेजी से बढ़ सकेगा।

वोरोनिश रडार और ड्रोन काउंटर टेक्नोलॉजी: सीमाओं की सुरक्षा

वर्तमान युद्ध क्षेत्र में ड्रोन खतरे का सामना करने के लिए उन्नत रडार सिस्टम अत्यंत आवश्यक हैं। रूस की कंटेनर-एस और वोरोनिश जैसे रडार सिस्टम लंबी दूरी पर छिपे हुए खतरों और ड्रोन का पता लगाने में सक्षम हैं। भारत इन प्रणालियों को अपनाकर अपनी वायु रक्षा तंत्र को और मजबूत बना सकता है। इस क्षेत्र में संयुक्त विकास और विनिर्माण से न केवल तत्काल जरूरतें पूरी होंगी, बल्कि भारत की रक्षा उत्पादन क्षमता भी बढ़ेगी।

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