यह पहल केवल तकनीकी विकास नहीं, बल्कि भूमि विवादों की बढ़ती समस्या का समाधान भी है। वर्षों से भूमि अभिलेखों की ढंग से उपलब्धता न होने की वजह से न केवल नागरिकों को परेशानी होती रही है, बल्कि कई बार छोटे-छोटे विवाद बड़े कानूनी झगड़ों में तब्दील हो जाते हैं। अब डिजिटाइजेशन के जरिए इन दस्तावेज़ों को सुरक्षित रखा जाएगा और नागरिक इन्हें आसानी से देख व डाउनलोड कर सकेंगे।
राज्य सरकार ने इस दिशा में चार करोड़ 17 लाख दस्तावेज़ों को डिजिटाइज करने का लक्ष्य तय किया है, जिसे तीन चरणों में पूरा किया जाएगा। फिलहाल, अप्रैल 2025 से पांच एजेंसियां इस कार्य में लगी हैं। पहले चरण में जुलाई 2025 तक 50 लाख दस्तावेज़ ऑनलाइन हो जाएंगे। दूसरे चरण में वर्ष 1948 से 1990 तक के करीब दो करोड़ 23 लाख, तीसरे और अंतिम चरण में 1908 से 1947 तक के एक करोड़ 44 लाख दस्तावेज़ों को ऑनलाइन लाया जाएगा।
गौरतलब है कि विभाग के पास 1796 से अब तक के ज़मीन से जुड़े दस्तावेज़ कागज़ी रूप में मौजूद हैं, जिनमें से 99% से अधिक ज़मीन-जायदाद से संबंधित हैं। इन्हें सहेजना न केवल एक बड़ी जिम्मेदारी है, बल्कि कानूनी और सामाजिक दृष्टिकोण से भी बेहद अहम।
डिजिटाइजेशन से कई फायदे होंगे—जमीन संबंधी विवाद कम होंगे, रिकॉर्ड में छेड़छाड़ की गुंजाइश घटेगी और भू-माफियाओं की पकड़ कमजोर पड़ेगी। साथ ही, नागरिकों को जमीन खरीद-बिक्री के समय प्रामाणिक जानकारी जल्दी और पारदर्शी तरीके से मिल सकेगी।
0 comments:
Post a Comment