न्यूज डेस्क। दुनिया के दो सबसे बड़े सामरिक प्रतिद्वंद्वी — अमेरिका और चीन — अब एक नई रेस में हैं, जो भविष्य की वायु शक्ति को परिभाषित करेगी। यह रेस है 6वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों की, जहां न केवल तकनीकी श्रेष्ठता दांव पर है, बल्कि आने वाले दशकों में वैश्विक शक्ति संतुलन का भी निर्धारण होना तय है।
हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा F-47 नामक नेक्स्ट जेनरेशन फाइटर जेट की घोषणा ने इस रेस को एक नया मोड़ दिया है। वहीं दूसरी ओर, चीन भी पीछे हटने को तैयार नहीं है — उसके दो प्रोटोटाइप, J-36 और J-50, पहले ही उड़ान भर चुके हैं।
ट्रंप की घोषणा और अमेरिका की रणनीति
मार्च 2025 में डोनाल्ड ट्रंप ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि अमेरिका "दुनिया का पहला छठी पीढ़ी का लड़ाकू विमान" विकसित कर रहा है। इस परियोजना के लिए बोइंग को ज़िम्मेदारी सौंपी गई है, जिसे F-47 के नाम से जाना जा रहा है। हालांकि ट्रंप ने इसे एक नई शुरुआत की तरह पेश किया, असलियत यह है कि अमेरिका ने 2020 में ही NGAD (Next Generation Air Dominance) कार्यक्रम के तहत इस तकनीक पर काम शुरू कर दिया था। रिपोर्टों के अनुसार, अब तक तीन प्रमुख रक्षा कंपनियाँ — बोइंग, लॉकहीड मार्टिन और नॉर्थ्रॉप ग्रुम्मन — अपने-अपने प्रोटोटाइप की उड़ानें कर चुकी हैं।
चीन की तेज़ी: J-36 और J-50 का परीक्षण
चीन इस दौड़ में केवल भाग नहीं ले रहा, बल्कि आक्रामक रुख में दिखाई दे रहा है। दिसंबर 2024 में, उसने दो प्रोटोटाइप — J-36 (CAC द्वारा विकसित) और J-50 (SAC द्वारा विकसित) — की परीक्षण उड़ानों से दुनिया को चौंका दिया। J-36 को स्टेल्थ और नेटवर्क-सेंट्रिक क्षमताओं के साथ एक हाई-मोबिलिटी जेट के रूप में देखा जा रहा है, जबकि J-50 के बारे में सैन्य पर्यवेक्षकों का मानना है कि वह हाइपरसोनिक गति और AI आधारित हथियार प्रणालियों से लैस है।
क्या वास्तव में अमेरिका चीन से पीछे है?
तकनीकी दृष्टिकोण से अमेरिका अभी भी कई मायनों में चीन से आगे है — विशेष रूप से इंजन तकनीक, एवियोनिक्स और युद्ध नेटवर्किंग में। लेकिन चीन की त्वरित प्रगति और परीक्षणों की आक्रामकता ने अमेरिकी नीति निर्माताओं को सतर्क कर दिया है। NGAD का फोकस सिर्फ एक जेट नहीं, बल्कि एक मॉड्यूलर सिस्टम बनाने पर है, जिसमें मानवयुक्त और मानव रहित दोनों प्लेटफॉर्म्स एक ही युद्ध नेटवर्क में काम करें।
0 comments:
Post a Comment