यूपी में होम्योपैथी मेडिकल स्टोर पर सख्ती, जांच शुरू

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के होम्योपैथी विभाग में लंबे समय से चल रही अनियमितताओं पर अब शिकंजा कसता दिखाई दे रहा है। हाल ही में विभाग के निदेशक प्रो. एके वर्मा के निलंबन के बाद अब उनके कार्यकाल में जारी किए गए मेडिकल स्टोर लाइसेंसों की गहन जांच की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इसके साथ ही संबद्धता मामलों और डॉक्टरों की उपस्थिति को लेकर भी प्रशासन सख्त होता दिख रहा है।

प्रो. ए.के. वर्मा के कार्यकाल की जांच के घेरे में लाइसेंस

प्रदेश में लगभग 20,000 से अधिक होम्योपैथिक मेडिकल स्टोर संचालित हो रहे हैं। इनमें से कई स्टोरों को लाइसेंस सीधे निदेशालय से जारी किए गए थे, विशेषकर उन जिलों में जहां मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (CMS) तैनात नहीं थे। अब प्रो. वर्मा के निलंबन के बाद ऐसे सभी लाइसेंसों की समीक्षा की जा रही है। आयुष महानिदेशालय ने पत्रावलियां तलब की हैं, जिनमें कोई गड़बड़ी या अनियमितता पाए जाने पर लाइसेंस रद्द करने की कार्रवाई की जाएगी। इससे प्रदेश में फर्जी या बिना योग्यता के मेडिकल स्टोर संचालन पर लगाम लगने की उम्मीद है।

संबद्धता मामलों की भी होगी दोबारा जांच

निदेशक स्तर पर कार्रवाई के बाद अब उन मामलों की भी समीक्षा होगी, जिनमें चिकित्सकों को अलग-अलग कारणों से संबद्धता दी गई थी। बताया जा रहा है कि कई स्थानांतरण रद्द होने के बाद भी कुछ चिकित्सकों को मनमर्जी से नई तैनाती दी गई थी। अब इन मामलों की नए सिरे से जांच होगी और जहां कारण उचित नहीं पाया जाएगा, वहां संबद्धता निरस्त की जाएगी। इससे विभाग में जारी मनमानी और प्रभावशाली नियुक्तियों पर नियंत्रण की दिशा में ठोस कदम माना जा रहा है।

डॉक्टरों की उपस्थिति पर कड़ी नजर

होम्योपैथी डिस्पेंसरियों में डॉक्टरों की लापरवाही पर भी सरकार ने सख्त रुख अपना लिया है। डिजिटल हाजिरी प्रणाली लागू किए जाने के बावजूद कई डॉक्टर नियमित रूप से उपस्थित नहीं पाए गए हैं। आयुष राज्यमंत्री डॉ. दयाशंकर मिश्र दयालु ने निर्देश दिए हैं कि डॉक्टर समय से अस्पताल पहुंचें और हाजिरी दर्ज करें। किसी भी प्रकार की अनुपस्थिति पाए जाने पर न केवल संबंधित डॉक्टर के खिलाफ, बल्कि संबंधित जिला होम्योपैथी अधिकारी की भी जवाबदेही तय की जाएगी।

विभाग में मचा है हलचल का माहौल

इन सभी कार्रवाइयों और निर्देशों के बाद होम्योपैथी विभाग में हड़कंप की स्थिति है। जहां एक ओर अनियमित रूप से लाभ उठाने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों में चिंता बढ़ी है, वहीं पारदर्शिता और जवाबदेही के पक्षधर लोगों को यह एक सकारात्मक बदलाव के रूप में दिख रहा है।

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