मिसाइल निर्माण में आत्मनिर्भर भारत की छलांग
'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' अभियानों के तहत रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और सार्वजनिक-निजी क्षेत्र की रक्षा कंपनियाँ अब मिसाइल निर्माण में निर्णायक भूमिका निभा रही हैं। भारत अब कम दूरी की टैक्टिकल मिसाइलों से लेकर अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों (ICBM) तक, कई प्रकार की मिसाइलों का स्टॉकपाइल तैयार कर रहा है। इसमें अग्नि, पृथ्वी, ब्रह्मोस, के-श्रेणी, अस्त्र, नाग, पिनाका और निर्भय जैसी आधुनिक मिसाइलें शामिल हैं। इसके अलावे भारत हाइपरसोनिक मिसाइल पर तेजी से काम कर रहा हैं।
रणनीतिक संतुलन के लिए जरूरी कदम
विशेषज्ञों की मानें तो चीन की बढ़ती आक्रामकता और पाकिस्तान की पारंपरिक अस्थिरता को देखते हुए भारत का यह कदम अत्यंत आवश्यक है। लद्दाख सीमा पर तनाव, हिंद महासागर में चीनी गतिविधियाँ, और पाकिस्तान के साथ LOC पर लगातार संघर्षविराम उल्लंघन — इन सभी घटनाओं ने भारत को रक्षा नीति में आक्रामक संतुलन की ओर प्रेरित किया है।
मिसाइल भंडारण के क्या हैं फायदे?
1 .त्वरित जवाबी हमला (Quick Response Capability): भंडारण से भारत को आवश्यकता पड़ने पर दुश्मन को त्वरित और सटीक जवाब देने की क्षमता मिलेगी।
2 .रणनीतिक दबाव (Strategic Deterrence): स्टॉकपाइल में वृद्धि पड़ोसी देशों को यह स्पष्ट संदेश देती है कि भारत अब केवल रक्षात्मक नहीं, बल्कि जरूरत पड़ने पर निर्णायक कार्रवाई के लिए भी तैयार है।
3 .सेना को तत्काल सपोर्ट: सीमाओं पर तैनात बलों को आवश्यकता पड़ने पर बिना देरी के मिसाइल सप्लाई की जा सकेगी।
चीन-पाक की बढ़ती चिंता
सूत्रों के अनुसार चीन की खुफिया एजेंसियाँ भारतीय मिसाइल कार्यक्रम की प्रगति पर बारीकी से नजर रख रही हैं। वहीं पाकिस्तान भी अपने पुराने हथियार सिस्टम को अपग्रेड करने की कोशिश में है। लेकिन भारत की गति और तकनीकी आत्मनिर्भरता ने दोनों को चिंतित कर दिया है।
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