भारत और चीन की रफ्तार अमेरिका से तेज? ट्रंप को टेंशन

नई दिल्ली। अमेरिका हमेशा से वैश्विक राजनीति और आर्थिक शक्ति का केंद्र रहा है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में दो एशियाई महाशक्तियों — भारत और चीन — ने तेजी से विकास की रफ्तार पकड़ ली है, जिससे अमेरिका की विश्व नेतृत्व की स्थिति चुनौती में आ गई है। इस बदलाव ने न केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका की पकड़ कमजोर की है, बल्कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सहित कई नीतिकारों के लिए भी चिंता का विषय बन गया है।

चीन और भारत की तेजी: क्या है वजह?

चीन ने पिछले तीन दशकों में जबरदस्त आर्थिक विकास किया है और अब वह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। उसकी विशाल उत्पादन क्षमता, टेक्नोलॉजी में निवेश, और घरेलू बाजार की ताकत ने उसे वैश्विक सप्लाई चेन में अव्वल बनाया है। Goldman Sachs के अनुसार, चीन की अर्थव्यवस्था 2035 तक अमेरिका से आगे निकलने की उम्मीद है। 

वहीं, भारत भी तकनीकी नवाचार, डिजिटल क्रांति, और सेवा क्षेत्र की मजबूती के कारण तेज़ी से उभर रहा है। भारत की युवा आबादी, स्टार्टअप संस्कृति, और सुधारवादी नीतियां उसे भविष्य की वैश्विक महाशक्ति बनने की दिशा में आगे बढ़ा रही हैं। भारत का जीडीपी ग्रोथ 2025 में 6.5% रहने का अनुमान है। कुछ अन्य रिपोर्ट्स में 6.1% से 6.4% का अनुमान भी लगाया गया है।

ट्रंप के लिए ये बड़ी चुनौती

डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति काल में चीन और भारत को लेकर अमेरिका की रणनीति में बड़े बदलाव आए हैं। चीन को कड़े व्यापार प्रतिबंधों और टैरिफ के जरिए नियंत्रित करने की कोशिश की जा रही हैं। वहीं, भारत के साथ भी व्यापार और सुरक्षा को लेकर नई नीतियां बनाई गईं। लेकिन इन सबके बावजूद, दोनों देशों की विकास गति ने ट्रंप प्रशासन को असहज कर दिया। विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की "अमेरिका फर्स्ट" नीति के बावजूद, भारत और चीन की बढ़ती ताकत अमेरिका के वैश्विक प्रभुत्व को चुनौती दे रही है।

भारत-चीन और अमेरिका: भविष्य की तस्वीर

यह स्पष्ट है कि आने वाले दशक में विश्व सत्ता की संतुलन में बड़े बदलाव आएंगे। भारत और चीन की वृद्धि की गति अमेरिका के लिए गंभीर चुनौती है, लेकिन साथ ही यह एक अवसर भी है। तीनों देशों के बीच सहयोग और प्रतिस्पर्धा का मिश्रण वैश्विक शांति, आर्थिक विकास और तकनीकी नवाचार के लिए नई दिशा तय करेगा। ट्रंप और उनके जैसे अन्य नेताओं की चिंता इस बात से है कि अमेरिका को इस बदलती परिस्थिति में अपनी नीति और रणनीति को फिर से परिभाषित करना होगा, ताकि वह अपनी वैश्विक स्थिति को बनाए रख सके।

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