स्पीड: जहां ब्रह्मोस बनती है दुश्मनों की सबसे बड़ी चुनौती
ब्रह्मोस की सबसे बड़ी ताकत इसकी रफ्तार है। यह सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल Mach 2.8 से Mach 3 तक की रफ़्तार पकड़ सकती है — यानी आवाज़ की गति से करीब तीन गुना तेज़। इतनी रफ्तार पर उड़ती मिसाइल को दुश्मन के एयर डिफेंस सिस्टम से रोक पाना बेहद मुश्किल हो जाता है। इसकी यही ताकत इसे 'फर्स्ट स्ट्राइक' के लिए आदर्श बनाती है।
JASSM: रडार से बच निकलने वाली चुपचाप मौत
वहीं, अमेरिका की JASSM मिसाइल स्पीड में भले ही पीछे हो (Mach 0.8 से 0.9 की स्पीड), लेकिन इसकी असली ताकत है इसका स्टील्थ डिज़ाइन। यह 'लो ऑब्ज़र्वेबल' यानी कम दिखने वाली प्रोफाइल के साथ आती है, जिससे यह दुश्मन के रडार पर नजर ही नहीं आती। यह चुपचाप अंदर घुसकर दुश्मन के सबसे अहम टारगेट्स को निशाना बना सकती है — बिना अलार्म ट्रिगर किए।
रेंज की रेस: नई ब्रह्मोस अब और भी आगे
JASSM की मूल रेंज लगभग 370 किलोमीटर है, जबकि इसका एडवांस वर्जन JASSM-ER लगभग 926 किलोमीटर तक पहुंचता है। इधर भारत ने भी ब्रह्मोस की रेंज को लगातार बढ़ाया है — इसकी नई वर्जन ब्रह्मोस-ईआर 800 किलोमीटर तक मार कर सकती है, और 1500 किलोमीटर रेंज वाली प्रणाली पर भी काम चल रहा है। यानी अब रेंज की होड़ में भी ब्रह्मोस JASSM को टक्कर देने ही नहीं, पछाड़ने की दिशा में है।
पेलोड और वारहेड: कौन करता है ज़्यादा नुकसान?
मारक क्षमता की बात करें तो ब्रह्मोस 200–300 किलोग्राम का पारंपरिक हाई-इम्पैक्ट वारहेड ले जा सकती है, जो दुश्मन के बंकर, जहाज या बेस को पूरी तरह नेस्तनाबूद कर सकती है। दूसरी ओर, JASSM में करीब 450 किलोग्राम का पेनिट्रेटर वारहेड होता है, जिसे खासतौर पर कंक्रीट संरचनाओं और भूमिगत टारगेट्स को भेदने के लिए बनाया गया है। यानी दोनों की मारक क्षमता अपने लक्ष्य के अनुसार बेहद प्रभावशाली है।
तैनाती और लचीलापन: किसकी पहुंच ज़्यादा?
ब्रह्मोस की खूबी यह है कि इसे ज़मीन, समुद्र और हवा — तीनों माध्यमों से लॉन्च किया जा सकता है। भारतीय वायुसेना के सुखोई-30MKI जैसे फाइटर जेट से लेकर नेवी की पनडुब्बियों और जंगी जहाजों तक, ब्रह्मोस हर जगह फिट बैठती है। JASSM हालांकि मुख्य रूप से एयर लॉन्च मिसाइल है, और F-15, F-16, B-2 और B-52 जैसे अमेरिकी लड़ाकू विमानों या बमवर्षकों से ही छोड़ी जा सकती है।
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