रूस को हिंद महासागर के पास मिलिट्री बेस का ऑफर

न्यूज डेस्क। भारत की दो दिवसीय यात्रा पूरी करने के बाद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जब मॉस्को लौटे, उसी दौरान एक ऐसा संकेत सामने आया जिसने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में खलबली मचा दी है। पूर्वी अफ्रीका का देश सूडान रूस को लाल सागर के तट पर नौसैनिक बेस देने के लिए तैयार बताया जा रहा है। 

यह प्रस्ताव ऐसे समय में आया है जब अमेरिका और उसके सहयोगी हिंद महासागर–रेड सी क्षेत्र में बढ़ते चीनी प्रभाव को लेकर पहले से ही चिंतित हैं। अब रूस की संभावित एंट्री इस सामरिक गलियारे में नई भू-राजनैतिक खाई गहरा सकती है।

सूडान का बड़ा प्रस्ताव

अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, सूडान की सैन्य सरकार ने रूस को जिस प्रकार की सुविधा प्रदान करने का संकेत दिया है, वह अफ्रीका और मध्य पूर्व की भू-राजनीति को बदलने की क्षमता रखता है। प्रस्ताव में रूस को पोर्ट सूडान या किसी अन्य रेड सी लोकेशन पर 300 तक सैनिक तैनात करने की मंजूरी और चार युद्धपोतों जिनमें परमाणु ऊर्जा से चलने वाले पोत भी शामिल हो सकते हैं, की तैनाती की अनुमति देने की बात है।

हालांकि यह मेहरबानी सूडान मुफ्त में नहीं कर रहा। इसके बदले में वह रूस से आधुनिक हथियार, एंटी-एयरक्राफ्ट सिस्टम और उन्नत सैन्य उपकरण चाहता है। फरवरी में ही सूडान ने इस दिशा में संकेत दिया था, लेकिन अब सौदे की शर्तें अधिक स्पष्ट होती दिख रही हैं।

रूस को क्यों चाहिए हिंद महासागर के पास यह बेस?

पिछले कई वर्षों से रूस अपने नौसैनिक प्रभाव को दोबारा स्थापित करने की कोशिश में है। सीरिया में असद शासन कमजोर पड़ने और वहां स्थित रूस की सैन्य उपस्थिति प्रभावित होने के बाद देश पश्चिम एशिया और भूमध्य सागर क्षेत्र में अपनी स्थिति खो चुका था। ऐसे में लाल सागर तक पहुंच रूस के लिए रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहीं से हिंद महासागर और सुएज नहर का संपर्क बनता है,

दुनिया के समुद्री व्यापार का बड़ा हिस्सा बाब-अल-मंदेब जलडमरूमध्य से गुजरता है, और यह क्षेत्र अमेरिका, चीन और खाड़ी देशों के बीच शक्ति संतुलन का केंद्र माना जाता है। इस इलाके में स्थायी सैन्य उपस्थिति रूस को हिंद महासागर और पश्चिमी एशिया दोनों पर अधिक प्रभाव देगी।

अमेरिका और पश्चिम की बढ़ती चिंता

यदि यह प्रस्ताव औपचारिक समझौते में बदलता है, तो इससे रूस को लाल सागर में दीर्घकालिक नौसैनिक पहुंच मिल जाएगी। इससे स्थिति इसलिए भी जटिल हो जाती है क्योंकि अमेरिका का इस क्षेत्र में पहले से एक महत्वपूर्ण सैन्य ठिकाना है, चीन जिबूती में अपना विदेशी नौसैनिक बेस चला रहा है, और अब रूस भी इसी गलियारे में प्रवेश की तैयारी कर रहा है। यह त्रिकोणीय सैन्य मौजूदगी हिंद महासागर और उसके आसपास की समुद्री सुरक्षा संरचना को पूरी तरह नया रूप दे सकती है। अमेरिका और यूरोपीय देश इसे अपने रणनीतिक हितों के लिए चुनौती के रूप में देख रहे हैं।

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