दुनिया में 6 देश बनाते हैं 'क्रोजनिक इंजन', भारत भी शामिल

नई दिल्ली। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अंतरिक्ष अनुसंधान वह ऊँचाई है, जहाँ तक पहुँचना हर देश का सपना होता है। इस सपने को साकार करने के लिए सबसे अहम तकनीक है – क्रोजनिक इंजन (Cryogenic Engine)। यह वह इंजन है जो रॉकेट को अंतरिक्ष की कक्षा में पहुँचाने के लिए बेहद कम तापमान पर तरल ईंधन का इस्तेमाल करता है। लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि आज भी दुनिया में केवल छह देश ऐसे हैं जो यह उच्च तकनीकी क्षमता रखते हैं।

क्या होता है क्रोजनिक इंजन?

क्रोजनिक इंजन वह रॉकेट इंजन होता है जो तरल ऑक्सीजन (LOX) और तरल हाइड्रोजन (LH2) जैसे क्रोजनिक ईंधन का उपयोग करता है। ये ईंधन -150°C से भी कम तापमान पर रखे जाते हैं। इसका इस्तेमाल रॉकेट के ऊपरी चरण (Upper Stage) में किया जाता है ताकि वह उपग्रह को उच्च कक्षा (GTO, GEO आदि) तक पहुँचा सके।

दुनिया के 6 देश जो क्रोजनिक इंजन बनाते हैं:

संयुक्त राज्य अमेरिका (USA): नासा और निजी कंपनियाँ जैसे स्पेसएक्स और ब्लू ओरिजिन क्रोजनिक तकनीक में अग्रणी हैं। अमेरिका का RS-25 इंजन (स्पेस शटल इंजन) इसका प्रमुख उदाहरण है।

रूस: सोवियत संघ के समय से ही रूस क्रोजनिक तकनीक में माहिर है। RD-0120 और RD-0146 जैसे इंजन इसकी मिसाल हैं।

फ्रांस/यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA): यूरोपियन रॉकेट Ariane श्रृंखला में क्रोजनिक तकनीक का प्रयोग होता है, विशेषकर Vulcain और HM7B इंजन में।

जापान: जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (JAXA) ने LE-7 और LE-9 इंजन के माध्यम से यह तकनीक विकसित की है।

चीन: चीन की Long March रॉकेट श्रृंखला में प्रयुक्त YF-75 और YF-77 इंजन इस दिशा में उसकी दक्षता को दर्शाते हैं।

भारत: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने इस कठिन तकनीक को स्वदेशी रूप से विकसित किया है। अब Semi-Cryo इंजन पर भी काम चल रहा है।

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