यूपी में 'ग्राम प्रधान' को कितनी सैलरी? जानिए पूरे अधिकार और सुविधाएं

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों की सरगर्मी एक बार फिर बढ़ चुकी है। गांव-गांव में चर्चाएं शुरू हो गई हैं, संभावित उम्मीदवार प्रचार की तैयारियों में जुट गए हैं। इस बार पिछड़ा वर्ग आरक्षण को लेकर एक अलग आयोग का गठन किया जा रहा है, जिससे चुनाव प्रक्रिया और भी व्यवस्थित होने की उम्मीद है। लेकिन इस पूरे माहौल में एक सवाल अकसर सामने आता है की जिस ग्राम प्रधान की कुर्सी के लिए लोग लाखों रुपये चुनाव में खर्च कर देते हैं, उस पद की मासिक सैलरी आखिर कितनी होती है?

ग्राम प्रधान की सैलरी कितनी है?

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से ग्राम प्रधान को हर महीने ₹5,000 मानदेय के रूप में दिया जाता है। पहले यह राशि ₹3,500 थी, जिसे वर्ष 2021 में बढ़ा दिया गया। हालांकि, यह रकम बहुत बड़ी नहीं मानी जाती, खासकर जब इसकी तुलना उस चुनावी खर्च से की जाए जो उम्मीदवार इस पद को पाने के लिए करते हैं।

केवल सैलरी ही नहीं, मिलते हैं अन्य अधिकार भी

ग्राम प्रधान की भूमिका केवल एक प्रतिनिधि की नहीं, बल्कि एक जिम्मेदार प्रशासक की भी होती है। उन्हें गांव के विकास कार्यों की निगरानी करनी होती है और कई बार महत्वपूर्ण निर्णय लेने पड़ते हैं। इसके लिए उन्हें कुछ प्रशासनिक अधिकार भी दिए गए हैं। अब ग्राम प्रधान को ₹5 लाख तक के वित्तीय मामलों को स्वीकृत करने का अधिकार प्राप्त है। यह उन्हें गांव में ज़रूरी कार्यों के लिए आत्मनिर्भर बनाता है।

प्रधान की मृत्यु पर सरकार देती है सहायता राशि

अगर किसी ग्राम प्रधान की कार्यकाल के दौरान मृत्यु हो जाती है, तो उनके परिवार को ₹10 लाख की सहायता राशि दी जाती है। यह योजना प्रधान के परिवार को आर्थिक संबल देने के उद्देश्य से शुरू की गई है।

तो फिर लोग इतनी मेहनत क्यों करते हैं ग्राम प्रधान बनने के लिए?

यह सवाल स्वाभाविक है। ₹5,000 की सैलरी के लिए इतना बड़ा चुनावी खर्च और प्रचार अभियान क्यों? इसका जवाब सिर्फ सैलरी में नहीं, बल्कि ग्राम प्रधान के सामाजिक प्रभाव और निर्णयात्मक अधिकारों में छिपा है। गांव के विकास कार्यों, सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन और बजट आवंटन में ग्राम प्रधान की अहम भूमिका होती है। यही कारण है कि यह पद ग्रामीण राजनीति में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

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