अमेरिका में गहराया संकट, पूरी दुनिया में हड़कंप!

नई दिल्ली। अमेरिका, जिसे दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति माना जाता है, आज खुद एक गहरे राजनीतिक और आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। इस संकट की गंभीरता सिर्फ अमेरिका तक सीमित नहीं है, इसके प्रभाव की गूंज वैश्विक अर्थव्यवस्था, कूटनीति और वित्तीय स्थिरता तक सुनाई दे रही है। इस बार मामला सिर्फ सरकार के बजट या घाटे का नहीं, बल्कि पूरे प्रशासनिक ढांचे और उसकी साख पर उठते सवालों का है।

सरकारी तंत्र पर सीधा प्रहार

अमेरिका की केंद्र सरकार में कार्यरत लगभग 30 लाख कर्मचारियों के लिए यह समय बेहद अनिश्चितता भरा है। तीन लाख से अधिक कर्मचारियों की सेवाएं पहले ही समाप्त की जा चुकी हैं। शेष बची नौकरियों पर भी खतरा मंडरा रहा है, खासकर वे संस्थाएं जो शिक्षा, शोध और सांस्कृतिक संरक्षण जैसे क्षेत्रों में काम करती हैं, जैसे स्कूल, लाइब्रेरी, म्यूजियम और नेशनल पार्क्स। अमेरिकी फौज, एफबीआई और सीआईए जैसे संस्थानों को तो कटौती से बख्शा जा सकता है, लेकिन शेष विभाग इस टकराव का सीधा निशाना बन रहे हैं।

सत्ता के गलियारों में टकराव

यह संकट असल में एक नीतिगत टकराव से उपजा है, जिसमें डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टियां आमने-सामने खड़ी हैं। बजट प्रस्तावों पर सहमति बनाने में असमर्थता, खासकर सेनेट में आवश्यक 60 मतों की कमी, पूरे वित्तीय संचालन को बाधित कर रही है। ट्रंप सरकार द्वारा पेश किए गए प्रस्तावों पर डेमोक्रेटिक पार्टी की नाराजगी का कारण है। स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकारी खर्च में कटौती। यह मुद्दा इतना संवेदनशील है कि कोई भी पक्ष पीछे हटने को तैयार नहीं।

राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक प्रभाव

यह स्थिति अमेरिका की स्थिरता पर सीधा प्रहार है। "लेम डक" सरकारें वहां की राजनीति में जानी-पहचानी बात हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह एक खतरनाक परंपरा बनती जा रही है, जहां विरोध के नाम पर संपूर्ण सरकारी संचालन को ठप कर देना कोई नई बात नहीं रह गई है। यह सिर्फ अमेरिकी जनता के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि अमेरिका की आर्थिक नीतियां वैश्विक बाजार को सीधे प्रभावित करती हैं।

अमेरिकी डॉलर की साख पर खतरा

इस अस्थिरता का सबसे बड़ा प्रभाव अमेरिका की वैश्विक साख और डॉलर की स्थिति पर पड़ा है। ब्रिक्स देशों द्वारा गैर-डॉलर व्यापार की पहल पहले ही अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती दे रही थी। अब जब अमेरिका का आंतरिक प्रशासनिक ढांचा ही लड़खड़ाता नजर आ रहा है, तब यह संभावना और भी मजबूत होती दिख रही है कि आने वाले समय में दुनिया वैकल्पिक वित्तीय व्यवस्थाओं की ओर रुख कर सकती है।

विश्व नेतृत्व पर सवाल

आज जब अमेरिका खुद अनिश्चितता के भंवर में फंसा है, तब यह सवाल उठता है कि क्या वह अब भी विश्व का नेतृत्व कर सकता है? क्या एक ऐसा देश, जो अपने कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं दे सकता, विश्व व्यापार और कूटनीति का मार्गदर्शन कर पाएगा? इसका उत्तर फिलहाल अस्पष्ट है, लेकिन इतना जरूर तय है कि यह संकट अमेरिका की ताकत नहीं, बल्कि उसकी कमज़ोरी को सामने ला रहा है।

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