1. भारत का विदेशी कर्ज़ और विदेशी मुद्रा भंडार
भारत का विदेशी कर्ज़ अब देश के विदेशी मुद्रा भंडार से भी ज्यादा हो गया है। यह स्थिति एक चिंताजनक संकेत हो सकती है, क्योंकि सामान्य तौर पर देश के विदेशी मुद्रा भंडार को कर्ज़ चुकाने के लिए एक सुरक्षा कवच के रूप में देखा जाता है। जब कर्ज़ विदेशी मुद्रा भंडार से अधिक हो जाता है, तो यह उस देश की वित्तीय स्थिरता पर दबाव डाल सकता है, क्योंकि कर्ज़ चुकाने के लिए अधिक विदेशी मुद्रा की जरूरत हो सकती है।
2. विकासशील देशों पर असर
भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए विदेशी कर्ज़ का बढ़ना एक चुनौती हो सकती है। इन देशों के पास अक्सर सीमित राजस्व स्रोत होते हैं, और जब कर्ज़ का बोझ बढ़ता है, तो उन्हें कर्ज़ चुकाने के लिए अधिक वित्तीय संसाधनों की जरूरत पड़ती है। इस स्थिति में, सरकारों को विकास कार्यों और अन्य महत्वपूर्ण परियोजनाओं के लिए खर्चों में कटौती करनी पड़ सकती है, जिससे समग्र आर्थिक विकास पर असर पड़ता है।
3. सॉवरेन रेटिंग पर असर
भारत के बढ़ते कर्ज़ का एक और प्रभाव देश की सॉवरेन रेटिंग पर पड़ सकता है। सॉवरेन रेटिंग उन विदेशी निवेशकों के लिए एक अहम संकेतक होती है, जो किसी देश में निवेश करने पर विचार करते हैं। यदि कर्ज़ अत्यधिक बढ़ता है और कर्ज़ चुकाने की क्षमता पर सवाल उठते हैं, तो यह रेटिंग एजेंसियों द्वारा नकारात्मक प्रतिक्रिया का कारण बन सकता है। इससे निवेशकों का विश्वास कमजोर हो सकता है, और इसके परिणामस्वरूप भारतीय रुपये की कीमत पर दबाव बढ़ सकता है।
4. भारत सरकार का कुल कर्ज़
भारत सरकार का कुल कर्ज़ सितंबर 2023 तक 161 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया था। इस आंकड़े के साथ देखा जाए तो पिछले 9 सालों में भारत सरकार पर कर्ज़ में 192% की बढ़ोतरी हुई है। यह वृद्धि सरकार के लिए एक बड़ी चिंता का विषय हो सकती है, क्योंकि यह संकेत देती है कि सरकारी खर्चों में बढ़ोतरी हुई है, और इसे चुकाने के लिए वित्तीय प्रबंधन में सुधार की आवश्यकता हो सकती है।
5. भारत का कर्ज़ कैसे बढ़ा?
कोविड-19 महामारी के दौरान सरकार को आर्थिक गतिविधियों को समर्थन देने के लिए बड़े पैमाने पर खर्च करना पड़ा, जिससे कर्ज़ में वृद्धि हुई। वहीं, सरकार द्वारा विभिन्न विकासात्मक परियोजनाओं और योजनाओं को पूरा करने के लिए कर्ज़ का सहारा लिया गया है। निर्यात और आयात के बीच असंतुलन के कारण भी कर्ज़ में वृद्धि हो सकती है, क्योंकि भारत को अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए विदेशों से उधारी करनी पड़ती है।
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