कभी यूक्रेन के पास था परमाणु हथियार का भंडार!

न्यूज डेस्क: आज के समय में यूक्रेन युद्ध से तबाही के कगार पर पहुंच गया हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक यूक्रेन का परमाणु निरस्त्रीकरण और उसके बाद रूस द्वारा किए गए आक्रमण पर विचार करते हुए यह सवाल उठता है कि क्या 1991 में यूक्रेन ने परमाणु हथियारों को छोड़कर सही कदम उठाया था, या फिर यह एक रणनीतिक भूल साबित हुई। विशेष रूप से 2014 में क्रीमिया पर रूस के कब्जे और 2022 में शुरू हुए युद्ध ने इस मुद्दे को फिर से गंभीर बना दिया है।

यूक्रेन के पास था परमाणु भंडार

सोवियत संघ के विघटन के बाद, यूक्रेन ने स्वतंत्रता प्राप्त की और उसके पास उस समय दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा परमाणु शस्त्रागार था। 1991 तक, यूक्रेन के पास 5,000 परमाणु हथियार थे, जिनमें 3,000 सामरिक और 2,000 रणनीतिक हथियार शामिल थे। इन हथियारों में अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM), परमाणु बमवर्षक विमान और मिसाइलें शामिल थीं। यूक्रेन के पास इतनी विशाल परमाणु क्षमता थी कि यदि वह इसे बनाए रखता तो वह सुरक्षा के मामले में एक ताकतवर देश बन सकता था।

परमाणु निरस्त्रीकरण का निर्णय

1991 में, जब यूक्रेन ने स्वतंत्रता प्राप्त की, तो देश के नेताओं ने शांति और सुरक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए परमाणु हथियारों को छोड़ने का फैसला किया। हालांकि, यह निर्णय यूक्रेन के लिए एक समझौते के तहत लिया गया था। 1994 में बुडापेस्ट मेमोरेंडम पर हस्ताक्षर हुए, जिसमें यूक्रेन ने अपने परमाणु हथियारों को नष्ट करने का वचन दिया और बदले में रूस, अमेरिका और ब्रिटेन से सुरक्षा गारंटी प्राप्त की। इन देशों ने आश्वासन दिया कि वे यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करेंगे और अगर कोई देश यूक्रेन पर हमला करता है तो वे उसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के माध्यम से समर्थन देंगे।

रूस के आक्रमण के बाद की स्थिति

क्रीमिया पर रूस के कब्जे और 2022 में यूक्रेन में शुरू हुए युद्ध ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह सुरक्षा गारंटी वास्तव में खोखली थीं। रूस ने बुडापेस्ट मेमोरेंडम की धज्जियां उड़ाते हुए 2014 में क्रीमिया पर हमला किया और फिर 2022 में एक पूर्ण पैमाने पर युद्ध शुरू किया। इसने यह साबित कर दिया कि परमाणु निरस्त्रीकरण के बाद सुरक्षा गारंटी का कोई वास्तविक मूल्य नहीं था।

परमाणु हथियार निरस्त्रीकरण क्या एक भूल थी?

यूक्रेन के परमाणु निरस्त्रीकरण पर उस समय कई विशेषज्ञों ने सवाल उठाए थे, और उनमें से कई ने इसे एक बड़ी रणनीतिक भूल माना था। 1993 में राजनीतिक वैज्ञानिक जॉन मियरशाइमर ने चेतावनी दी थी कि परमाणु हथियारों को छोड़ना यूक्रेन के लिए एक खतरनाक कदम हो सकता है। उनके अनुसार, परमाणु शक्ति यूक्रेन को सुरक्षा प्रदान कर सकती थी, और बिना परमाणु हथियारों के, यूक्रेन किसी बड़े देश के आक्रमण का शिकार बन सकता था।

यूक्रेन ने यह निर्णय शांति बनाए रखने के उद्देश्य से लिया था, लेकिन यह समझौता तभी कारगर हो सकता था जब उन देशों द्वारा दी गई सुरक्षा गारंटी पर ईमानदारी से अमल किया जाता। लेकिन, रूस ने न केवल इन गारंटियों को तोड़ा, बल्कि यूक्रेन को एक नाजुक स्थिति में डाल दिया।

परमाणु हथियारों का छोड़ना और रूस का फायदा

1994 में परमाणु निरस्त्रीकरण के बाद, यूक्रेन के परमाणु हथियारों को नष्ट नहीं किया गया बल्कि रूस को स्थानांतरित कर दिया गया। इससे रूस का परमाणु शस्त्रागार मजबूत हुआ, और यूक्रेन का हाथ खाली हो गया। यह स्थिति रूस के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण से फायदेमंद साबित हुई क्योंकि उसने अपने परमाणु हथियारों को और मजबूत किया और यूक्रेन को एक महत्वपूर्ण सुरक्षा उपाय से वंचित कर दिया।

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