महिलाओं में बढ़ रही हैं ये 5 प्रमुख स्वास्थ्य समस्याएं? जानें विशेषज्ञों की राय

हेल्थ डेस्क। हाल के वर्षों में महिलाओं की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं तेजी से बढ़ी हैं। बदलती जीवनशैली, खानपान की आदतें, तनाव और जागरूकता की कमी के चलते कई बीमारियां महिलाओं को तेजी से अपनी चपेट में ले रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि समय पर जांच, संतुलित जीवनशैली और सही जानकारी से इन समस्याओं को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।

1. स्तन कैंसर (Breast Cancer)

स्तन कैंसर दुनियाभर में महिलाओं में सबसे आम प्रकार का कैंसर बन चुका है। भारतीय महिलाओं में यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है। डॉ. रितु गुप्ता, वरिष्ठ ऑन्कोलॉजिस्ट, बताती हैं कि, "30 वर्ष की आयु के बाद हर महिला को साल में एक बार मैमोग्राफी जरूर करानी चाहिए। समय पर जांच और इलाज से इस बीमारी को रोका जा सकता है।"

2. सर्वाइकल कैंसर (Cervical Cancer)

यह गर्भाशय ग्रीवा से संबंधित कैंसर है, जो मुख्य रूप से ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (HPV) के संक्रमण से होता है।गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. सविता मल्होत्रा कहती हैं, "HPV वैक्सीन और नियमित पैप स्मीयर टेस्ट महिलाओं को इस कैंसर से बचा सकता है। यह भारत में महिलाओं की मृत्यु का एक प्रमुख कारण बनता जा रहा है।"

3. थायराइड रोग (Thyroid Disorders)

महिलाओं में हाइपोथायरॉइडिज्म सबसे आम है, जिसमें शरीर पर्याप्त थायराइड हार्मोन नहीं बना पाता। इससे वजन बढ़ना, थकावट और मूड स्विंग्स जैसी समस्याएं होती हैं। एंडोक्रिनोलॉजिस्ट डॉ. अंशुल वर्मा बताते हैं, "थायराइड असंतुलन महिला हार्मोन पर सीधा असर डालता है, जिससे मासिक धर्म अनियमित और प्रजनन क्षमता प्रभावित हो सकती है। समय पर टेस्ट कराना जरूरी है।"

4. एनीमिया (Anemia)

आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया भारतीय महिलाओं में बहुत आम है। यह थकान, चक्कर आना और त्वचा की रंगत फीकी पड़ने जैसे लक्षणों के रूप में सामने आता है। डायटीशियन नीता मिश्रा के अनुसार, "भारत में हर दूसरी महिला एनीमिया से पीड़ित है। आयरन युक्त भोजन और नियमित ब्लड टेस्ट इस समस्या को रोकने में मददगार हो सकते हैं।"

5. फाइब्रॉएड (Uterine Fibroids)

यह गर्भाशय में बनने वाली गांठें होती हैं जो अधिकतर 30 से 45 की उम्र की महिलाओं में पाई जाती हैं। इनमें पेट दर्द, मासिक धर्म में भारी रक्तस्राव और कभी-कभी बांझपन जैसी समस्याएं हो सकती हैं। डॉ. प्रियंका भल्ला, गाइनकोलॉजिस्ट, बताती हैं, "हालांकि अधिकतर फाइब्रॉएड गैर-घातक होते हैं, लेकिन इनके लक्षण गंभीर होने पर मेडिकल या सर्जिकल हस्तक्षेप जरूरी होता है।"

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