किस आधार पर लिया गयायह बड़ा फैसला?
नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग के प्रमुख सचिव एम. देवराज की ओर से जारी अधिसूचना के अनुसार यह निर्णय अत्यावश्यक सेवाओं का अनुरक्षण अधिनियम (ESMA)-1966 के तहत लागू किया गया है। इस अधिनियम का उद्देश्य उन सेवाओं को बाधित होने से बचाना है, जिनका सीधे तौर पर जनता के जीवन, स्वास्थ्य और सुरक्षा पर प्रभाव पड़ता है।
आदेश स्पष्ट करता है कि कोई भी कर्मचारी, कोई संगठन या यूनियन, तथा कोई भी सरकारी संस्था अगले छह महीनों तक हड़ताल की घोषणा नहीं कर सकेगी और न ही उसमें भाग ले सकेगी।
जनहित को ध्यान में रखकर लिया गया निर्णय
सरकार का कहना है कि कई महत्वपूर्ण विभागों का संचालन जनता की आवश्यकताओं से सीधे जुड़ा है। हड़तालें न केवल प्रशासनिक कामकाज को प्रभावित करती हैं, बल्कि आम नागरिकों को भी भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इस प्रतिबंध के जरिए सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि अस्पताल, बिजली-पानी की आपूर्ति, परिवहन, नगर निगम सेवाएं, और अन्य सार्वजनिक सुविधाएं बिना किसी बाधा के सुचारू तरीके से चलते रहें।
पहले भी लागू हुई थी रोक, अब अवधि बढ़ी
जून में ही सरकार ने छह महीने की अवधि के लिए हड़ताल पर रोक लगाई थी। यह कदम बिजली व्यवस्था को निजी हाथों में दिए जाने के खिलाफ संभावित आंदोलन और विरोध को देखते हुए उठाया गया था। अब इस अवधि को आगे बढ़ाते हुए फिर से छह महीने का विस्तार किया गया है। इससे साफ है कि सरकार आने वाले समय में किसी भी प्रकार की सेवा बाधित नहीं होने देना चाहती।
कर्मचारियों पर क्या होगा प्रभाव?
किसी भी विभाग में हड़ताल की योजना बनाना या उसमें भाग लेना अब कानूनी रूप से दंडनीय होगा। कर्मचारी यूनियनों को भी किसी तरह का सामूहिक आंदोलन या विरोध कार्यक्रम करने से रोका गया है। आवश्यक सेवाओं से जुड़े कर्मचारियों पर और सख्ती से यह नियम लागू होगा।
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