बीते आठ वर्षों में इस योजना के अंतर्गत राज्य सरकार ने 4 लाख से अधिक गरीब कन्याओं का विवाह पूरे सम्मान और रीति-रिवाज के साथ कराया है। यह आंकड़ा अपने आप में बताता है कि योजना ने जमीनी स्तर पर कितना गहरा प्रभाव डाला है। चालू वित्तीय वर्ष 2025-26 में सरकार ने 57 हजार शादियों का लक्ष्य रखा था, लेकिन अब तक 1.20 लाख से अधिक आवेदन प्राप्त होना इस योजना पर लोगों के बढ़ते भरोसे को दर्शाता है। इनमें से 14 हजार से अधिक विवाह सफलतापूर्वक संपन्न भी कराए जा चुके हैं।
वंचित वर्गों को मिला वास्तविक लाभ
मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना का सबसे बड़ा लाभ समाज के उन वर्गों को मिला है, जो वर्षों से आर्थिक तंगी और सामाजिक असमानता से जूझते रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार, अब तक सबसे अधिक लाभ दलित वर्ग को मिला है, जहां 2.20 लाख से अधिक परिवारों की बेटियों का विवाह कराया गया।
इसके अलावा पिछड़े वर्ग के लगभग 1.30 लाख परिवार और अल्पसंख्यक वर्ग के 40 हजार से अधिक परिवार इस योजना से लाभान्वित हुए हैं। सामान्य वर्ग के भी करीब 16 हजार गरीब परिवारों ने इस योजना का सहारा लेकर अपनी बेटियों की शादी कराई है।
यह योजना उन परिवारों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण साबित हुई है, जो विवाह जैसे बड़े सामाजिक दायित्व को पूरा करने में असमर्थ थे। सामूहिक विवाह की व्यवस्था ने न केवल खर्च को कम किया, बल्कि दहेज जैसी कुप्रथा पर भी प्रभावी अंकुश लगाने का कार्य किया।
आर्थिक सहयोग के साथ सम्मान की भावना
इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक नवविवाहित जोड़े को कुल 1 लाख रुपये की सहायता दी जाती है। इसमें विवाह से जुड़ी आवश्यक सामग्री, वधू के बैंक खाते में दी जाने वाली नकद राशि और विवाह आयोजन की पूरी व्यवस्था शामिल होती है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि विवाह केवल औपचारिकता न रहकर, सम्मानजनक और सुरक्षित तरीके से संपन्न हो।
योजना के प्रभारी उपनिदेशक आर.पी. सिंह के अनुसार, यह पहल सिर्फ आर्थिक मदद तक सीमित नहीं है, बल्कि सामुदायिक सहयोग, सामाजिक एकता और महिलाओं के सशक्तिकरण को बढ़ावा देने का माध्यम भी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की यह योजना राज्य में समावेशी विकास का उदाहरण बन चुकी है। यह साबित करती है कि यदि नीतियां सही दिशा में और ईमानदारी से लागू की जाएं, तो समाज के सबसे कमजोर वर्गों के जीवन में भी बड़ा बदलाव लाया जा सकता है।
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