चीन में खपत और निवेश दोनों कमजोर
चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो द्वारा जारी ताजा आँकड़ों के अनुसार, नवंबर महीने में देश की आर्थिक गतिविधियों में साफ गिरावट दर्ज की गई। खुदरा बिक्री, जो उपभोक्ता मांग का अहम संकेतक मानी जाती है, केवल 1.3 प्रतिशत बढ़ी। यह पिछले तीन वर्षों में सबसे धीमी वृद्धि है। विशेषज्ञों को इससे कहीं बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी, लेकिन उपभोक्ताओं की कमजोर खरीदारी ने अर्थव्यवस्था को झटका दिया।
औद्योगिक उत्पादन भी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा। नवंबर में फैक्ट्री उत्पादन की वृद्धि 4.8 प्रतिशत रही, जो पिछले महीने से कम है। इससे यह संकेत मिलता है कि चीन की मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भी रफ्तार धीमी पड़ रही है। इसके साथ ही निवेश का मोर्चा भी दबाव में है। रियल एस्टेट सेक्टर में भारी गिरावट के कारण फिक्स्ड-एसेट इन्वेस्टमेंट में कमी आई है, जिसने समग्र आर्थिक माहौल को और कमजोर कर दिया।
भारत की अर्थव्यवस्था ने दिखाई मजबूती
इसके विपरीत, भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत आधार पर आगे बढ़ती दिख रही है। हालिया रिपोर्टों के अनुसार, वित्त वर्ष 2025-26 की दूसरी तिमाही में भारत की GDP वृद्धि 8.2 प्रतिशत रही, जो अनुमान से कहीं बेहतर है। पहली छमाही में औसतन 8 प्रतिशत की ग्रोथ यह बताती है कि देश की आर्थिक रफ्तार स्थिर और संतुलित बनी हुई है।
भारत की इस मजबूत स्थिति के पीछे कई कारण हैं। विनिर्माण क्षेत्र में सुधार, सेवा क्षेत्र का विस्तार, घरेलू खपत में बढ़ोतरी और सरकार द्वारा इंफ्रास्ट्रक्चर व निवेश को बढ़ावा देना। इन सकारात्मक संकेतों को देखते हुए एशियाई विकास बैंक और अन्य संस्थानों ने भारत के लिए FY26 का विकास अनुमान बढ़ाकर 7.2 प्रतिशत कर दिया है।
वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती भूमिका
आज भारत न केवल एशिया बल्कि पूरी दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो गया है। स्थिर नीतियाँ, युवा आबादी और मजबूत घरेलू बाजार भारत को वैश्विक निवेशकों के लिए आकर्षक बना रहे हैं। वहीं चीन की सुस्त होती अर्थव्यवस्था वैश्विक सप्लाई चेन और व्यापार पर भी असर डाल सकती है।
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