विश्व बैंक का सहयोग, वैज्ञानिक आधार पर योजना
इस परियोजना को 10 दिसंबर को विश्व बैंक के निदेशक मंडल से औपचारिक मंजूरी मिल चुकी है। यह कोई सामान्य योजना नहीं, बल्कि वायुक्षेत्र-आधारित वायु गुणवत्ता प्रबंधन कार्यक्रम है, जिसे विशेष रूप से इंडो-गंगा के मैदानों में प्रदूषण के प्रमुख कारणों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।
परियोजना की रूपरेखा विश्व बैंक द्वारा आईआईटी कानपुर, आईआईटी दिल्ली और अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों के सहयोग से किए गए गहन वैज्ञानिक अध्ययनों पर आधारित है। इससे यह स्पष्ट होता है कि योजना केवल तात्कालिक समाधान नहीं, बल्कि दीर्घकालिक और टिकाऊ परिणामों पर केंद्रित है।
2700 करोड़ रुपये की योजना
करीब 2700 करोड़ रुपये की लागत से तैयार यह परियोजना वर्ष 2025 से 2031 तक छह वर्षों में चरणबद्ध तरीके से लागू की जाएगी। इस दौरान उद्योग, परिवहन, निर्माण कार्य, कृषि अवशेष जलाने और शहरी गतिविधियों जैसे प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
मजबूत प्रशासनिक ढांचा
परियोजना के सफल संचालन के लिए एक सशक्त शासी निकाय का गठन किया गया है। इसकी अध्यक्षता प्रदेश के मुख्य सचिव करेंगे, जबकि प्रमुख सचिव और अपर मुख्य सचिव सदस्य के रूप में शामिल रहेंगे। इससे नीति निर्धारण से लेकर क्रियान्वयन तक बेहतर समन्वय सुनिश्चित होगा।
स्वच्छ हवा की दिशा में कदम
तेजी से बढ़ते शहरीकरण और औद्योगिक गतिविधियों के कारण वायु प्रदूषण उत्तर प्रदेश के लिए एक गंभीर चुनौती बन चुका है। इस परियोजना के जरिए न केवल प्रदूषण को नियंत्रित करने की कोशिश की जाएगी, बल्कि आम लोगों के स्वास्थ्य और जीवन स्तर को भी बेहतर बनाने पर जोर दिया जाएगा।
कुल मिलाकर, योगी सरकार की यह पहल उत्तर प्रदेश को स्वच्छ, स्वस्थ और पर्यावरण के अनुकूल बनाने की दिशा में एक निर्णायक कदम मानी जा रही है। यदि यह परियोजना तय लक्ष्यों के अनुरूप सफल होती है, तो आने वाले वर्षों में प्रदेश की हवा में साफ बदलाव देखने को मिल सकता है।

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