यूपी में 'किसानों' के लिए खुशखबरी, गांव-गांव तक लाभ!

लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार किसानों को सशक्त बनाने की दिशा में एक और ठोस कदम उठा रही है। प्रदेश के किसानों तक आधुनिक कृषि तकनीक, वैज्ञानिक जानकारी और सरकारी योजनाओं का लाभ सीधे गांवों तक पहुंचाने के उद्देश्य से किसान पाठशाला कार्यक्रम को और प्रभावी रूप देने की तैयारी की जा रही है। सरकार का स्पष्ट संदेश है कि यह अभियान केवल औपचारिकता न बने, बल्कि जमीन पर किसानों के लिए वास्तविक लाभ लेकर आए।

पूरे प्रदेश में विस्तार की तैयारी

कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा 12 दिसंबर को बाराबंकी के ग्राम दौलतपुर से शुरू किया गया यह कार्यक्रम अब प्रदेशभर में गुणवत्ता के साथ लागू किया जाएगा। इसके तहत चालू वर्ष में लगभग 21 हजार ग्राम पंचायतों में किसान पाठशालाओं और ग्राम स्तरीय कृषि गोष्ठियों का आयोजन किया जाएगा। सभी जिलों और मंडलों के अधिकारियों को इस संबंध में स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए जा चुके हैं।

गांव में ही मिलेगा सीखने का अवसर

किसान पाठशाला का आयोजन केवल एक स्थान तक सीमित नहीं रहेगा। इसे पैक्स सोसायटी, किसान कल्याण केंद्र, कृषि विज्ञान केंद्र, ग्राम पंचायत सचिवालय, प्राथमिक विद्यालय और यहां तक कि प्रगतिशील व सम्मानित किसानों के खेतों पर भी आयोजित किया जाएगा। जिन गांवों में यह कार्यक्रम प्रस्तावित है, वहां के ग्राम प्रधानों को पहले से सूचना देकर सहभागिता सुनिश्चित की जाएगी।

वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों की सीधी भागीदारी

कार्यक्रम की खास बात यह होगी कि इसमें आईसीएआर संस्थानों, कृषि विज्ञान केंद्रों और कृषि महाविद्यालयों से जुड़े वैज्ञानिक और प्रोफेसर अनिवार्य रूप से शामिल होंगे। इससे किसानों को नई शोध आधारित तकनीकों, आधुनिक कृषि पद्धतियों और नवाचारों की जानकारी सीधे विशेषज्ञों से मिल सकेगी।

किसान पाठशाला में किन विषयों पर होगा फोकस

किसान पाठशालाओं में खेती से जुड़े मौजूदा और व्यावहारिक मुद्दों पर विशेष चर्चा की जाएगी। इनमें बुवाई के बाद फसल सुरक्षा, फसल अवशेषों का सही प्रबंधन, विभिन्न विभागीय योजनाओं की जानकारी और जायद फसलों की खेती की रणनीति प्रमुख रूप से शामिल हैं। उद्देश्य यह है कि किसान मौसम और परिस्थितियों के अनुसार सही निर्णय ले सकें।

कृषि निदेशक डॉ. पंकज त्रिपाठी के अनुसार किसान पाठशाला कार्यक्रम 12 से 29 दिसंबर के बीच आयोजित किए जाने हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि कार्यक्रमों की संख्या से ज्यादा उनकी गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाए, ताकि किसानों को वास्तव में उपयोगी और व्यावहारिक जानकारी मिल सके।

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