भारत और रूस की ऊर्जा साझेदारी
रिपोर्ट के अनुसार, रूस के कुल क्रूड एक्सपोर्ट में चीन सबसे बड़ा खरीदार रहा, जिसका हिस्सा 47% था। भारत ने दूसरा स्थान हासिल किया, उसका हिस्सा 38% रहा। इसके अलावा तुर्की और यूरोपीय देशों का हिस्सा लगभग 6-6% रहा।
दिलचस्प बात यह है कि पहले भारत मुख्य रूप से मध्य-पूर्वी देशों से तेल खरीदता था। लेकिन यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी देशों की रूस से दूरी ने भारत के लिए अवसर पैदा किया। भारी छूट पर मिलने वाले रूसी तेल ने भारत की रणनीति बदल दी। युद्ध से पहले रूस का हिस्सा भारत की तेल खपत में लगभग 1% था, जो अब 40% तक बढ़ गया है।
अमेरिकी पाबंदियों के बावजूद खरीद
अक्टूबर के अंत में अमेरिका ने रूस की दो बड़ी तेल कंपनियों Rosneft और Lukoil पर पाबंदियां लगा दी थीं। इसके बाद भारत की कई प्राइवेट रिफाइनरियों जैसे रिलायंस, HPCL और MRPL ने अस्थायी रूप से रूस से तेल की खरीद कम कर दी।
हालांकि, सरकारी कंपनी इंडियन ऑयल (IOC) ने उन सप्लायर्स से तेल की खरीद जारी रखी, जिन पर प्रतिबंध नहीं लगे हैं। रिपोर्ट बताती है कि प्राइवेट रिफाइनरियों ने आयात घटाया, जबकि सरकारी रिफाइनरियों ने नवंबर में रूस से तेल की खरीद 22% बढ़ा दी।
रिफाइनिंग और निर्यात का फायदा
आयात किए गए तेल का एक बड़ा हिस्सा भारत में रिफाइन किया गया और रिफाइंड फ्यूल के रूप में कई देशों, खासतौर पर ऑस्ट्रेलिया को भेजा गया। इस रणनीति से भारत ने न सिर्फ अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया, बल्कि वैश्विक बाजार में एक नई आर्थिक भूमिका भी स्थापित की।
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