58 और 53 सालों की देरी का अंत
आजमगढ़ जिले के दो गांव उबारपुर और लखमीपुर में चकबंदी की पहल वर्ष 1967 में हुई थी, लेकिन अभिलेख गुम होने और कानूनी जटिलताओं के कारण यह प्रक्रिया 58 वर्षों तक रुकी रही। इसी तरह आजमगढ़ के ही ग्राम गहजी में चकबंदी वर्ष 1972 में शुरू हुई, लेकिन ग्रामीणों के बीच आपसी असहमति तथा बाद में चले न्यायिक विवाद के कारण मामला 53 सालों तक अटका रहा।
चकबंदी आयुक्त ने बताया कि न्यायालय में दायर वाद के निस्तारण के बाद ग्रामवासियों के बीच सहमति स्थापित की गई। इसके बाद नए अभिलेख तैयार कर धारा-52(1) के तहत प्रख्यापन की औपचारिकता पूरी करवाकर प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया गया।
इन 17 जिलों के गांवों में मिला बड़ा लाभ
चकबंदी पूरी होने से निम्न जिलों के 25 गांवों को लाभ मिल रहा है: बस्ती, संतकबीरनगर, देवरिया, कानपुर नगर, प्रयागराज, उन्नाव, मऊ, आजमगढ़, लखीमपुर खिरी, कन्नौज, प्रतापगढ़, फतेहपुर, बरेली, मिर्जापुर, सीतापुर, सुल्तानपुर और सोनभद्र। इन क्षेत्रों में किसानों को एकीकृत खेती के लिए समतल, व्यवस्थित और विवाद-मुक्त भूमि उपलब्ध होगी, जिससे भूमि संबंधित संघर्षों में कमी आने की उम्मीद है।
चकबंदी पूरी होने के बड़े लाभ
भूमि विवादों में कमी
जमीन की उत्पादकता में बढ़ोतरी
भू-स्वामित्व के स्पष्ट अभिलेख तैयार
कृषि कार्यों में सुगमता और लागत में कमी
ग्रामीण विकास योजनाओं के क्रियान्वयन में तेजी

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