आधार लिंकिंग के बाद उजागर हुई अनियमितताओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वर्षों से ऐसे लाखों लोग भी सरकारी अनाज का लाभ उठा रहे थे, जिन्हें इसका कोई हक़ नहीं था। सरकार ने इस अभियान की पहली सूची तैयार की है, जिसमें 54.20 लाख संदिग्ध नाम हटाने की तैयारी चल रही है। यह संख्या ही इस बात का संकेत है कि राशन व्यवस्था में कितनी बड़ी गड़बड़ी छिपी हुई थी।
वेरिफिकेशन अभियान के आंकड़े चौंकाने वाले है
मुजफ्फरपुर में लगभग 2.34 लाख नाम जांच के दायरे में, पूर्वी चंपारण में 1.5 लाख से अधिक नाम संदिग्ध, सीतामढ़ी में करीब 99,000 लाभार्थियों पर सवाल। इन जिलों ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। उधर, पटना में मौजूद 10.33 लाख सक्रिय राशन कार्डों में से 65,000–70,000 नाम हटने की आशंका जताई जा रही है। कई जगह ई-केवाईसी की प्रक्रिया तेज की जा चुकी है।
डेटा मिलान में खुली परतें
आईटी, परिवहन, राजस्व, भूमि सुधार और नागरिक पंजीकरण विभागों के डेटा को एक साथ मिलाकर जब जांच शुरू हुई, तो फर्जीवाड़े की अनेक परतें खुलने लगीं। जांच में पाया गया कि कई ऐसे लोग भी राशन ले रहे थे जिनके पास 2.5 एकड़ से अधिक जमीन है, चार पहिया वाहन के मालिक, आयकर दाता। ऐसे लोगों के नाम भी सक्रिय थे जिनकी मृत्यु हो चुकी है यानी अब तक सिस्टम में मौजूद कमज़ोरियों का फायदा उठाकर बड़ी संख्या में लोग अनाज ले रहे थे, जबकि जरूरतमंद असली लाभार्थी वंचित रह जाते थे।
तेजी से चल रहा सत्यापन
केंद्र सरकार से अद्यतन डेटा मिलने के बाद बिहार ने अभियान की गति बढ़ा दी। PDS के नियम स्पष्ट बताते हैं किमृत व्यक्ति, कार मालिक, अधिक भूमि वाले और आयकरदाता राशन लेने के पात्र नहीं हैं। इन्हीं मानदंडों के आधार पर अब राज्य सरकार बड़ी सफाई की तैयारी में है। जिन लोगों पर फर्जी दस्तावेज़ का संदेह है, उन्हें नोटिस भेजने की तैयारी की जा रही है। इसके तहत लाभार्थियों को 90 दिन का समय दिया जाएगा ताकि वे अपनी बात साबित कर सकें।

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