गोपनीय जांच में खुली पोल
28 अप्रैल को प्राप्त एक गोपनीय शिकायत के आधार पर शिक्षा विभाग ने राज्य के कुछ सरकारी विद्यालयों का औचक निरीक्षण कराया। निरीक्षण के दौरान यह सामने आया कि कुछ शिक्षक, जो विद्यालय के निकट ही रहते हैं, वे केवल उपस्थिति रजिस्टर में हस्ताक्षर करके स्कूल से चले जाते हैं और दिनभर अनुपस्थित रहते हैं।
इतना ही नहीं, कुछ शिक्षकों के स्थानीय राजनीतिक गतिविधियों में भी शामिल होने की पुष्टि हुई है। ये शिक्षक न केवल अपनी शैक्षणिक जिम्मेदारियों से विमुख हैं, बल्कि राजनीतिक हस्तक्षेप के जरिए विद्यालयी व्यवस्था को भी प्रभावित कर रहे हैं।
शिक्षा विभाग का सख्त रुख
डॉ. सिद्धार्थ ने इसे शिक्षा विभाग के प्रति गंभीर धोखाधड़ी करार देते हुए कहा है कि ऐसे शिक्षकों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने जिला शिक्षा अधिकारियों को निर्देशित किया है कि ऐसे मामलों में कोई भी कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी और दोषियों को तत्काल निलंबित कर उनके खिलाफ विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।
राजनीति और शिक्षा का घातक मेल
शिक्षा विभाग के अनुसार, शिक्षकों का राजनीति में लिप्त होना न केवल उनके कर्तव्यों की अनदेखी है, बल्कि यह छात्रों के भविष्य के साथ भी खिलवाड़ है। विभाग का मानना है कि शिक्षक समाज का मार्गदर्शक होता है और यदि वही अपने मूल दायित्वों से भटक जाए, तो शिक्षा की नींव कमजोर हो जाती है।
शिक्षा व्यवस्था में सुधार की पहल
राज्य सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि शिक्षकों की मनमानी अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी। यह अभियान सिर्फ एक बार का निरीक्षण नहीं, बल्कि एक निरंतर निगरानी और सुधार की प्रक्रिया का हिस्सा है। आने वाले दिनों में और भी विद्यालयों में औचक निरीक्षण होंगे और दोषियों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा।
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