वैज्ञानिक दो ग्रहों के बीच की दूरी को कैसे मापते हैं, जानें विस्तार से

साइंस डेस्क: आपने अक्सर पढ़ा होगा पृथ्वी सूर्य के दुरी के बारे में मंगल बुध के दुरी के बारे में। लेकिन आपने कभी सोचा हैं की वैज्ञानिक इस दूरी को कैसे मापते हैं। आज इसी विषय में जानने की कोशिश करेंगे विस्तार से की दो ग्रहों के बीच की दूरी कैसे मापी जाती हैं। तो आइये इसके बारे में जानते हैं विस्तार से। 
1 .आपको बता दें की ग्रहों और सितारों से दूरी को रेडियो तरंगों की मदद से नापते हैं। इसे 'कॉस्मिक डिस्टेंड लैडर' कहते हैं। इसके लिए वैज्ञानिक दूसरे ग्रहों और तारों तक रेडियो तरंगें भेजते हैं। वो आने जाने में जितना वक़्त लेती हैं, उससे उन ग्रहों या तारों की दूरी का अंदाज़ा लगाया जाता है। इसके लिए बड़ी दूरबीनों का इस्तेमाल किया जाता है। जिससे दो ग्रहों और तारों की दूरी के बारे में जानकारी मिलती हैं। 

2 .तारों के दूरी को मापने के लिए जो दूसरा तरीक़ा वैज्ञानिक आज़माते हैं, वो है तारों की चमक का पैमाना।  इसके लिए रोशनी की रफ़्तार की मदद लेते हैं। असल में जैसे-जैसे कोई चीज़ हमसे दूर होती जाती है, हमारी नज़र उससे तिरछी होती जाती है। वैज्ञानिक इस प्रक्रिया को 'रेडशिफ्ट' कहते हैं।

3 .1908 में वैज्ञानिक हेनरिटा स्वान लियाविट ने पता लगाया था कि सितारों की एक ख़ास नस्ल होती है। इन्हें सेफिड कहा जाता है। ये दूसरे सितारों के मुक़ाबले ज़्यादा चमकीले होते हैं। इनकी मदद से दूसरी आकाशगंगाओं और फिर ब्रह्मांड के विस्तार का पता लगाया जा सकता है। कई वैज्ञानिक इस तरीकों का भी इस्तेमाल करते हैं। 

4 .वैज्ञानिकों की पड़ताल के मुताबिक़ धरती से जो सबसे दूर सितारा है, वो क़रीब चौदह अरब साल पुराना है। यानी उसकी रोशनी को धरती तक पहुंचने में इतना वक़्त लगा। इस वक़्त ब्रह्मांड और फैल चुका है। इस आधार पर वैज्ञानिक कहते हैं कि आज वो तारा धरती से क़रीब 46.5 प्रकाश वर्ष दूर है।  

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