यूपी में इन अधिकारियों का प्रमोशन रद्द, पढ़ें डिटेल्स

न्यूज डेस्क: उत्तर प्रदेश में लखनऊ बेंच के न्यायालय द्वारा एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया गया है, जिसमें सचिवालय प्रशासन विभाग द्वारा जारी वरिष्ठता सूची और अनुभाग अधिकारी के पद पर प्रोन्नति के आदेश को निरस्त कर दिया गया। यह निर्णय न्यायमूर्ति आलोक माथुर की पीठ ने शिव दत्त जोशी व अन्य की ओर से दाखिल याचिका पर पारित किया।

क्या हैं पूरा मामला:

13 जुलाई 2016 को उत्तर प्रदेश सरकार ने 144 सहायक समीक्षा अधिकारियों को समीक्षा अधिकारी के पद पर प्रोन्नति दी थी। आदेश में यह स्पष्ट किया गया था कि प्रोन्नति 30 जून 2016 से मानी जाएगी। इसके बाद, विभाग में तीन बार वरिष्ठता सूचियाँ तैयार की गईं, लेकिन इनमें 30 जून 2016 से प्रोन्नति का विरोध किया गया था, क्योंकि यह बैक डेट से प्रोन्नति को वैध नहीं मानते थे।

9 अगस्त 2023 को सरकार ने यह निर्णय लिया कि बैक डेट से प्रोन्नति देना विधिपूर्ण नहीं है और 13 जुलाई 2016 से ही इन अधिकारियों की प्रोन्नति मानी जाएगी। इसके पश्चात 25 अक्टूबर 2023 को सीधी भर्ती वाले समीक्षा अधिकारियों को अनुभाग अधिकारी के पद पर प्रोन्नति दे दी गई।

न्यायिक दृष्टिकोण और कानूनी सिद्धांत

लखनऊ बेंच ने इस मामले में अहम निर्णय लिया, जिसमें सरकार के आदेश और वरिष्ठता सूची को निरस्त कर दिया गया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वरिष्ठता में बदलाव एक समय सीमा के भीतर ही किया जा सकता है। सात साल बाद अधिकारियों की वरिष्ठता में बदलाव को असंवैधानिक और विधिक दृष्टिकोण से गलत माना गया। यह सिद्धांत सामान्य रूप से स्वीकार किया गया है कि एक बार किसी कर्मचारी की वरिष्ठता निश्चित हो जाने के बाद, उसे बदलने की कोई वैध वजह नहीं होनी चाहिए, खासकर जब वर्षों तक वरिष्ठता में कोई परिवर्तन न किया गया हो।

न्यायालय का आदेश और उसका असर

न्यायालय ने इस फैसले के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि 7 साल बाद वरिष्ठता में बदलाव नहीं किया जा सकता, खासकर जब वह बदलाव पहले से तय की गई वरिष्ठता के विरुद्ध हो। यह आदेश न केवल इस मामले से संबंधित अधिकारियों के लिए, बल्कि पूरी प्रशासनिक प्रणाली के लिए एक महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश है। इस निर्णय से यह भी संकेत मिलता है कि सरकार को अपनी नीतियों में पारदर्शिता और न्यायसंगत तरीके से काम करना चाहिए।

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