खतौनी और घरौनी में त्रुटियाँ:
खतौनी और घरौनी कृषि भूमि से जुड़ी महत्वपूर्ण दस्तावेज़ होते हैं, जिनका इस्तेमाल भूमि के स्वामित्व, अधिकारों और अंश निर्धारण में होता है। इन दस्तावेजों में हुई त्रुटियाँ न केवल किसानों के कानूनी अधिकारों को प्रभावित करती हैं, बल्कि उनके रोज़मर्रा के कामकाज में भी विघ्न डालती हैं। उदाहरण के लिए, किसानों के नाम, जाति या आधार कार्ड में स्पेलिंग में भिन्नताएँ होने की वजह से फार्मर आईडी तक बनाना मुश्किल हो रहा है। इन समस्याओं का असर न केवल सरकारी योजनाओं के लाभ पर पड़ता है, बल्कि किसानों के लिए अनावश्यक दौड़-धूप का कारण भी बनता है।
मनमानी अंश निर्धारण:
अंश निर्धारण में हुई मनमानी ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है। किसानों को यह शिकायत है कि उनके भूमि के हिस्से का सही निर्धारण नहीं किया जा रहा है, जिसके कारण उनके समर्पण या मालिकाना अधिकारों में स्पष्टता नहीं मिल पा रही है। इससे पहले से ही परेशान किसानों को और अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ता है। यह समस्या तब और बढ़ जाती है जब किसान सही दस्तावेज़ के बिना अपनी जमीन पर क़ानूनी रूप से अधिकार नहीं साबित कर पाते हैं।
भ्रष्टाचार का मुद्दा:
इससे भी अधिक चिंता का विषय यह है कि इन प्रक्रियाओं में बिना पैसे के काम नहीं हो पा रहे हैं, जिससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है। किसानों का आरोप है कि यदि वे छोटे-मोटे कामों के लिए सरकारी दफ्तरों में जाते हैं, तो उन्हें बिना शुल्क या लेनदेन के कोई सहायता नहीं मिल रही है। इससे न केवल किसानों का विश्वास सरकारी व्यवस्था से उठ रहा है, बल्कि यह भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा दे रहा है।
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