न्यूज डेस्क: कोरोना हमें क्या मारेगा? हम मर ही चुके हैं साहब। शरीर में जान नहीं है। तीन-चार दिनों से भूखा -प्यासा हूं। पैर में छाले पड़ गए हैं। अब एक कदम भी नहीं चला जा रहा है। सांसें उखड़ रही हैं। कब गिर जाऊंगा पता नहीं। ये शब्द हैं दिल्ली से पैदल आ रहे मो. इरशाद के। एनएच किनारे बंजारी में अपनी व्यथा बताते हुए वह जमीन पर बैठ गया। बेतिया का रहने वाला इरशाद एक -एक शब्द बोलते हुए हांफ रहा था। रो -बिलख रहा था। वह अपनी तस्वीर लेने से मना करते हुए गिड़गिड़ाने लगा-चार दिनों से सोया नहीं हूं। जब तक मोबाइल की बैट्री थी तब तक परिवार के लोगों से बात हुई। अब दो दिनों से किसी से संपर्क नहीं हो पा रहा।
दिल्ली में मजदूरी करने वाला इरशाद ने बताया कि लॉक डाउन के बाद फैक्टी मालिक ने किसी तरह घर भाग जाने को कहा। वेतन भी नहीं दिया। कुल जमा सात सौ पचास रुपए लेकर वहां से कहीं पैदल तो कहीं टेंपो व जुगाड़ गाड़ी से भागते हुए यूपी पहुंचा। कुशीनगर से वह पैदल ही आ रहा है। इरशाद की तरह दिल्ली व यूपी के पूर्वांचल इलाके से मजदूरों का पलायन एनएच के रास्ते व इसके समानान्तर पगडंडियों से बदस्तूर जारी है।
क्वारन्टाइन सेंटर में जाने से बच रहे।
राज्य सरकार के निर्देश के बाद यूपी सीमा तक पहुंचे लोगों को बसों से लाकर जिले में बनाए गए क्वारंटाइन सेंटरों व आश्रय गृहों में रखा जा रहा है। लेकिन, सैकड़ों मजदूर प्रशासन से बच कर खेतों के पगडंडियों व गंडक नदी के तट के सहारे अपने घर तक पहुंचने की आस में आगे की ओर बढ़ रहे हैं। ये रास्ते उन्हें कहां ले जाएंगे,उन्हें खुद पता नहीं है। वे दिशा के अंदाज से सिर्फ आगे बढ़ रहे हैं।
गोदना गोदने वाली मां-बेटी यूपी में फंसी
यूपी के गांवों में घूम-घूम कर गोदना गोदने वाली जिले के खजूरी गांव की मां-बेटी यूपी के बड़हरागंज में फंसी हुई हैं। लॉक डाउन से पहले ही जमुनी खातून व उसकी बेटी हसीना खातून बडहरागंज पहुंची थी। दोनों गांवों में घूमकर महिलाओं के हाथ में गोदना गोदकर अपने परिवार का परवरिश करती हैं। अचानक हुए लॉकडाउन के बाद मां-बेटी यहां फंस गई हैं। बड़हरागंज निवासी निशारुल्ला ने इन दोनों मां बेटी को अपने घर पर शरण दे रखा है। परिजन दोनों से मोबाइल के जरिए लगातार संपर्क बनाए हुए हैं।
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