न्यूज डेस्क: जब कोई अपराधी तमाम कोशिशों के बावजूद सच नहीं बोलता हैं तब सच्चाई जानने के लिए नार्को टेस्ट किया जाता हैं। आपको बता दें की इस टेस्ट को फॉरेंसिक एक्सपर्ट, जांच अधिकारी, डॉक्टर और मनोवैज्ञानिक आदि की मौजूदगी में किया जाता है।
कैसे होता है नार्को टेस्ट।
मिली जानकारी के मुताबिक नार्को टेस्ट में अपराधी या किसी व्यक्ति को ट्रुथ ड्रग नाम की एक साइकोएक्टिव दवा दी जाती है या फिर सोडियम पेंटोथोल का इंजेक्शन लगाया जाता है। इस इंजेक्शन को लगाने के बाद इंसान ऐसी अवस्था में पहुँच जाता है की वो पूरी तरह से बेहोश भी नहीं होता और पूरी तरह से होश में भी नहीं रहता है।
इसके बाद मनोवैज्ञानिक व्यक्ति से उस केस से जुड़ा सवाल करते हैं या फिर उसे उस केस से जुड़ी तस्वीर दिखाई जाती हैं। जिसके बाद मनोवैज्ञानिकों को वो व्यक्ति केस से जुड़ी पूरी सच्चाई बता दें है। क्यों की इंजेक्शन देने के बाद वो क्या बोल रहा है उसके बारे में उसे पता नहीं चलता हैं।
आपको बता दें की नार्को टेस्ट करने से पहले डॉक्टर उस व्यक्ति का मेडिकल चेक करते हैं। डॉक्टर की अनुमति मिलने के बाद ही किसी व्यक्ति का नार्को टेस्ट किया जाता हैं। क्यों की कई बात व्यक्ति का स्वास्थ्य ठीक नहीं होने या दवाई के अधिक डोज के कारण यह टेस्ट फ़ैल भी हो जाता है।
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