शिक्षा के अधिकार अधिनियम और नो डिटेंशन पॉलिसी
शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 में लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य देश के हर बच्चे को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना था। इस कानून के तहत आठवीं कक्षा तक के छात्रों को बिना परीक्षा के फेल न करने की नीति बनाई गई। इसके कारण कमजोर छात्र भी अगली कक्षा में प्रमोट हो रहे थे, भले ही उनका प्रदर्शन अच्छा न हो। यह नीति छात्रों के मनोबल को बनाए रखने और शिक्षा की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई थी।
प्रदेशों में लागू बदलाव
देश के कई राज्यों ने पहले ही इस नीति को समाप्त कर दिया है, जिनमें असम, बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और दिल्ली जैसे राज्य शामिल हैं। अब उत्तर प्रदेश, जो देश का सबसे बड़ा राज्य है, इस मुद्दे पर मंथन कर रहा है। राज्य सरकार की योजना है कि वह इस नीति को लेकर निर्णय लेने से पहले सभी पक्षों की राय ले।
यूपी में सीबीएसई स्कूलों पर असर
केंद्र सरकार की नई नीति के अनुसार, सीबीएसई स्कूलों को राज्य की "नो डिटेंशन पॉलिसी" का पालन करना होगा। इसका मतलब यह है कि अगर राज्य सरकार नो डिटेंशन पॉलिसी को जारी रखती है, तो यूपी के सीबीएसई स्कूलों में भी यह नीति लागू रहेगी। यदि राज्य सरकार इसे समाप्त करती है, तो यूपी के सभी सरकारी और निजी स्कूलों में पाँचवीं और आठवीं कक्षा के छात्रों के लिए कक्षा में प्रमोशन पाने के लिए परीक्षा में पास होना अनिवार्य हो जाएगा।
बेसिक शिक्षा विभाग का निर्णय
राज्य सरकार के बेसिक शिक्षा विभाग ने कहा है कि वह इस मुद्दे पर जल्दी ही बैठकें आयोजित करेगा और इसके बाद निर्णय लिया जाएगा। यदि नो डिटेंशन पॉलिसी को खत्म करने का निर्णय लिया जाता है, तो यह सभी सरकारी और निजी स्कूलों में लागू होगा। इसके बाद, पांचवीं और आठवीं कक्षा के छात्रों को परीक्षा में पास करने के बाद ही अगली कक्षा में प्रमोशन मिलेगा। यह कदम शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने और छात्रों के प्रदर्शन को बेहतर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण हो सकता है।
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