कावेरी इंजन का महत्व और विकास
कावेरी इंजन, जिसे भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित किया जा रहा है, भारत के स्वदेशी एयरो-इंजन विकास कार्यक्रम में एक प्रमुख स्थान रखता है। इस इंजन के परीक्षण से भारत के हवाई शक्ति क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।
कावेरी इंजन का विकास 1980 के दशक में शुरू हुआ था, लेकिन इसमें कई चुनौतियां आईं और यह कई बार असफल भी हुआ। हालांकि, 2016 में इस परियोजना को पुनर्जीवित किया गया और इसे मानव रहित लड़ाकू हवाई वाहन (UCAV) के लिए एक ड्राई संस्करण में परिवर्तित किया गया। अब, यह इंजन वास्तविक उड़ान परीक्षणों के लिए तैयार है, जो इसके क्षमता का मूल्यांकन करने के लिए किया जाएगा।
परीक्षण प्रक्रिया और वैश्विक सहयोग
कावेरी इंजन के इनफ्लाइट परीक्षण का पहला चरण एक फ्लाइंग टेस्ट बेड (FTB) पर किया जाएगा, जिसमें इस इंजन को विभिन्न उड़ान कंडीशनों, मौसम परिस्थितियों, और उच्च-गति वाले परिक्षणों में मूल्यांकित किया जाएगा। यह परीक्षण इंजन की सहनशीलता, प्रदर्शन क्षमता और दक्षता का मूल्यांकन करेगा, साथ ही यह भी सुनिश्चित करेगा कि इंजन विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों, जैसे कि लोकेशन, तापमान और वातावरण में कैसे कार्य करता है।
इन परीक्षणों को रूस के ग्रोमोव फ्लाइट रिसर्च इंस्टीट्यूट में किया जाएगा, जो मास्को के पास स्थित है। यह परीक्षण IL-76 विमान पर आधारित फ्लाइंग टेस्ट बेड पर होंगे। ग्रोमोव संस्थान में किया जाने वाला यह परीक्षण पहले किए गए हाई एल्टीट्यूड सिमुलेशन परीक्षणों का एक हिस्सा है, जिसमें 13,000 मीटर (42,651 फीट) की ऊंचाई पर इंजन के प्रदर्शन का मूल्यांकन किया गया था। अब यह पूरी तरह से तैयार है और आगामी वर्ष 2024-25 तक सभी परीक्षणों को पूरा करने का लक्ष्य है, जबकि 2025-26 तक इस इंजन के सीमित उत्पादन की शुरुआत हो सकती है।
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