न्यूज डेस्क: आज के वैश्विक परिपेक्ष्य में चीन और अमेरिका के बीच प्रतिस्पर्धा केवल व्यापारिक या कूटनीतिक नहीं रही है। यह प्रतिस्पर्धा अब एक "साइलेंट युद्ध" के रूप में बदल चुकी है, जिसमें दोनों देशों के बीच प्रौद्योगिकी, विज्ञान, और सैन्य ताकत को लेकर निरंतर संघर्ष जारी है।
1. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की रेस
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या कृत्रिम बुद्धिमत्ता, चीन और अमेरिका के बीच सबसे महत्वपूर्ण प्रतिस्पर्धा का केंद्र बन चुकी है। AI के क्षेत्र में दोनों देशों की अपार क्षमता है, और यह क्षेत्र न केवल आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि सैन्य और सुरक्षा मामलों में भी इसका विशेष महत्व है।
अमेरिका में सिलिकॉन वैली और अन्य तकनीकी हबों ने AI अनुसंधान और विकास में जबरदस्त बढ़ोतरी की है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, और एप्पल जैसी कंपनियाँ AI के क्षेत्र में अग्रणी हैं। वहीं, चीन ने भी AI के क्षेत्र में भारी निवेश किया है। चीन सरकार ने इसे 2030 तक वैश्विक AI नेता बनने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए चीन ने अपने अनुसंधान संस्थानों, सरकारी प्रायोजित कार्यक्रमों और विश्वविद्यालयों में भारी निवेश किया है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की रेस में चीन ने एक बड़ी छलांग भी लगाई है आपको बता दें की हाल ही में चीन ने deepseekAI लॉंच किया है जिसने अमेरिका के चैट जीपीटी को भी पीछे छोड़ दिया है। इस संदर्भ में, AI की रेस चीन और अमेरिका के बीच "साइलेंट युद्ध" की एक महत्वपूर्ण कड़ी बन चुकी है।
क्वांटम रिसर्च की रेस
क्वांटम कंप्यूटिंग एक और ऐसा क्षेत्र है, जो चीन और अमेरिका के बीच प्रतिस्पर्धा का केंद्र बना हुआ है। काण्टम कंप्यूटिंग वह तकनीक है जो डेटा प्रोसेसिंग के पारंपरिक तरीकों से कहीं अधिक तेज और प्रभावी है। यह न केवल साइबर सुरक्षा के लिए खतरनाक हो सकता है, बल्कि बडी डेटा सेट्स को प्रोसेस करने में भी इसे क्रांतिकारी माना जा रहा है।
अमेरिका में काण्टम शोध में निवेश लगातार बढ़ रहा है, और यहाँ की प्रमुख कंपनियाँ जैसे IBM, Google और Intel काण्टम कंप्यूटिंग पर काम कर रही हैं। अमेरिका के काण्टम अनुसंधान में प्रमुख योगदान देने वाले विश्वविद्यालय और सरकारी संस्थाएँ भी हैं, जो इसे एक राष्ट्रीय प्राथमिकता मानती हैं।
वहीं, चीन ने भी इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए काण्टम तकनीकों पर विशेष ध्यान दिया है। चीन ने काण्टम उपग्रहों के माध्यम से काण्टम संचार में महत्वपूर्ण प्रगति की है, और यह काण्टम कंप्यूटिंग के विकास में भी अपनी भूमिका को बढ़ाने के लिए तत्पर है।
सैन्य ताकत की रेस
सैन्य शक्ति के मामले में भी अमेरिका और चीन के बीच एक निरंतर प्रतिस्पर्धा चल रही है। अमेरिका का सैन्य बजट दुनिया का सबसे बड़ा है, और उसकी सैन्य ताकत विश्व में सबसे प्रभावशाली मानी जाती है। हालांकि, चीन ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी सैन्य शक्ति में तेजी से सुधार किया है और इसे आधुनिक बनाने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश किया है। चीन का लक्ष्य अब अपने सैन्य क्षेत्र में अमेरिका को चुनौती देने का है, और इसके लिए उसने अपने सेना और नौसेना के लिए नए तकनीकी हथियारों और मिसाइलों का विकास किया है।
यह "साइलेंट युद्ध" केवल जमीनी सेनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि अब यह अंतरिक्ष और साइबर युद्ध की ओर भी बढ़ रहा है। सैन्य टेक्नोलॉजी में उन्नति की रेस, खास तौर पर AI और ड्रोन तकनीक का उपयोग, दोनों देशों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रतिस्पर्धा बन गई है।
स्पेस ताकत बढ़ाने की रेस
अंतरिक्ष में नेतृत्व करने की प्रतिस्पर्धा भी इस साइलेंट युद्ध का एक अहम हिस्सा है। अमेरिका का NASA और निजी कंपनियाँ जैसे SpaceX, Blue Origin अंतरिक्ष अन्वेषण में अग्रणी हैं। स्पेस टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अमेरिका ने बड़े मिशनों को अंजाम दिया है, जैसे कि मंगल पर रोवर भेजना और चाँद पर नए अभियान शुरू करना आदि।
चीन भी इस क्षेत्र में पीछे नहीं है। चीन ने अपनी स्पेस एजेंसी CNSA के तहत कई महत्वपूर्ण मिशन किए हैं, जैसे कि चाँद पर रोवर भेजना और मंगल पर अपनी पहली सफल लैंडिंग करना। इसके अलावा, चीन ने अपने स्वयं के स्पेस स्टेशन का निर्माण किया है, जो अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) से स्वतंत्र है।