चीन की वजह से भारत को वीटो पावर में अड़चन

नई दिल्ली: भारत के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सदस्यता प्राप्त करने के प्रयास लगातार जारी हैं, लेकिन इसके रास्ते में सबसे बड़ी अड़चन चीन बन चुका है। भारत की स्थायी सदस्यता की कोशिशों को लेकर दुनिया के कई प्रमुख देशों का समर्थन प्राप्त है, लेकिन चीन के विरोध ने इसे एक बड़ा चुनौतीपूर्ण मसला बना दिया है। यह विरोध न केवल भारत की वैश्विक भूमिका को प्रभावित करता है, बल्कि दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय राजनीति में भी कई सवाल खड़े कर देता है।

चीन का विरोध

भारत को UNSC में स्थायी सदस्यता दिलाने की दिशा में चीन की लगातार रोकथाम एक गंभीर समस्या बन चुकी है। चीन न केवल भारत के क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी के रूप में खड़ा है, बल्कि वह जानबूझकर UNSC में भारत की स्थायी सदस्यता को लेकर विरोध करता है। चीन का यह कदम उसकी वैश्विक रणनीति और दक्षिण एशिया में अपनी प्रभावशाली स्थिति बनाए रखने के लिए अहम है। चीन भारत को UNSC में एक शक्तिशाली सदस्य के रूप में नहीं देखना चाहता, क्योंकि इससे उसकी क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिति को चुनौती मिल सकती है।

अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन का समर्थन

हालांकि, भारत को UNSC में स्थायी सदस्यता दिलाने के लिए कई देशों का समर्थन प्राप्त है। अमेरिका, रूस, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे प्रमुख देशों ने भारत के पक्ष में अपनी आवाज उठाई है। इन देशों के समर्थन से भारत को वैश्विक स्तर पर काफी बल मिला है। अमेरिका ने भारत के स्थायी सदस्यता के हक में बयान दिया है, जबकि रूस और फ्रांस भी इस मुद्दे पर भारत के साथ खड़े हैं। ब्रिटेन ने भी भारत की भूमिका को मान्यता दी है और UNSC में सुधारों के पक्ष में बात की है।

भारतीय कूटनीति का महत्व

भारत की कूटनीतिक पहल और वैश्विक मंचों पर सक्रियता ने उसे कई देशों का समर्थन दिलवाया है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के UNSC में स्थायी सदस्यता का मुद्दा उठाया है और इसे सही ठहराया है। भारत की आर्थिक और सैन्य ताकत को भी उसकी स्थायी सदस्यता की मांग को मजबूती मिल रही है, जिससे वह UNSC के मामलों में अधिक प्रभावी भूमिका निभा सकता है।

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