आखिर पाकिस्तान ने कैसे बनाया परमाणु बम? जानें

न्यूज डेस्क: पाकिस्तान का परमाणु बम कार्यक्रम, जो आज दुनिया के सबसे विवादास्पद और संवेदनशील मुद्दों में से एक है, एक लंबी और रहस्यमयी यात्रा का परिणाम है। पाकिस्तान ने परमाणु हथियार बनाने के लिए 1970 के दशक में कई रणनीतिक कदम उठाए। इस प्रक्रिया का नेतृत्व प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. अब्दुल कादिर खान ने किया, जिन्हें पाकिस्तान के परमाणु हथियार कार्यक्रम का पिता माना जाता है।

पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत

पाकिस्तान का परमाणु हथियार कार्यक्रम 1971 के भारत के खिलाफ युद्ध के बाद शुरू हुआ। 1971 में पाकिस्तान की बुरी हार ने पाकिस्तान के नेताओं को यह अहसास दिलाया कि यदि उन्हें अपने देश की सुरक्षा को मजबूत करना है तो उन्हें परमाणु शक्ति की आवश्यकता है। 

इसी दौरान प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने घोषणा की थी कि पाकिस्तान भी भारत के समान परमाणु बम बनाएगा। भुट्टो ने कहा था, "अगर भारत बम बनाता है तो हम भले ही घास या पत्तियां खा लें, हम अपने लिए भी बम बनाएंगे।" इसके बाद पाकिस्तान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को लेकर गंभीरता से काम करना शुरू किया। पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम की दिशा और रणनीति को आकार देने के लिए डॉ. अब्दुल कादिर खान की भूमिका अहम थी।

अब्दुल कादिर खान और उनका योगदान

अब्दुल कादिर खान का योगदान पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम में अभूतपूर्व था। वे 1972 से 1975 तक अम्स्टर्डम में फिजिक्स डायनैमिक्स रिसर्च लैबोरेटरी में काम कर चुके थे, जहां उन्होंने यूरेनियम संवर्धन की तकनीकी जानकारी प्राप्त की। अब्दुल कादिर खान के पास यूरेनियम संवर्धन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी थी, जो पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के लिए बेहद अहम साबित हुई।

1976 में खान पाकिस्तान लौटे और पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को एक नई दिशा देने में सफल रहे। उन्होंने पाकिस्तानी वैज्ञानिकों को यूरेनियम संवर्धन तकनीकी की जानकारी दी और इसे पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के विकास में इस्तेमाल किया। इसके बाद पाकिस्तान ने 1980 के दशक में अपना पहला यूरेनियम संवर्धन प्लांट स्थापित किया।

पाकिस्तान का परमाणु हथियार बनाने का इतिहास

1974 में भारत द्वारा परमाणु परीक्षण के बाद पाकिस्तान ने भी अपनी परमाणु क्षमता को बढ़ाने का निर्णय लिया। पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम 1972 में शुरू हुआ था, लेकिन जब भारत ने 1974 में अपना पहला परमाणु परीक्षण "स्माइली" किया, तो पाकिस्तान को महसूस हुआ कि उसे भी इस दिशा में कदम उठाना होगा। यह भारत की परमाणु शक्ति का जवाब देने के लिए पाकिस्तान के लिए एक बडी चुनौती बन गया।

इसके बाद पाकिस्तान ने अपनी परमाणु योजना को और तेजी से आगे बढ़ाया। इस समय के दौरान पाकिस्तान ने परमाणु सामग्री और प्रौद्योगिकी के लिए कई देशों से सहारा लिया। पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम में मदद करने वाले देशों में कुछ विवादित नाम भी शामिल हैं। डॉ. अब्दुल कादिर खान पर 1983 में चोरी के आरोप लगे थे और उन्हें उत्तर कोरिया, ईरान, इराक, और लीबिया को परमाणु डिजाइनों और सामग्रियों की बिक्री में भी लिप्त पाया गया था।

1998 में पाकिस्तान का परमाणु परीक्षण

पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम 1990 के दशक के अंत तक आकार ले चुका था। 1998 में पाकिस्तान ने भारत के परमाणु परीक्षण के जवाब में खुद का परमाणु परीक्षण किया। 28 मई 1998 को पाकिस्तान ने चागाई के रेगिस्तान में पांच परमाणु विस्फोट किए, जिससे वह परमाणु शक्ति संपन्न देशों की सूची में शामिल हो गया।

यह परीक्षण पाकिस्तान के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण था और इससे पाकिस्तान की शक्ति और क्षेत्रीय सुरक्षा को नया आयाम मिला। पाकिस्तान ने यह भी घोषणा की कि उसका परमाणु कार्यक्रम सिर्फ आत्मरक्षा के लिए है और यह किसी अन्य देश के खिलाफ आक्रामक नहीं होगा।

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