बता दें की दादा-परदादा बिना किसी वसीयत के मर जाते हैं, तो उनकी संपत्ति पर उनकी पत्नी, पुत्र और बेटी का सम्मान अधिकार होता हैं। वहीं, दादा की पैतृक संपत्ति में पहले उनके बेटा-बेटी उसके बाद उनके नाती-पोते की समान हिस्सेदारी होती है।
वहीं, अगर कोई पोता दादा के नाती को संपत्ति में हिस्सा देने से मना करता है तो नाती अंतरिम राहत के लिए याचिका के साथ घोषणा और विभाजन के लिए एक दीवानी मामला दर्ज कर सकता है। वहीं अगर कोई भाई पिता की संपत्ति में बहन को हिस्सा नहीं देता हैं तो बहन भी दीवानी मामला दर्ज करा सकती हैं।
बता दें की पुश्तैनी संपत्ति पर जितना अधिकार एक बेटा का होता हैं, उतना ही अधिकार एक बेटी का भी होता हैं। लेकिन बिहार में समाजिक ताना-बाना इसतरह की हैं की आज भी बिहार में दादा-परदादा की संपत्ति में सिर्फ बेटा ही अधिकार रख रहा हैं।

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