भारत को मिलने जा रहा 'SU-57' स्टील्थ फाइटर जेट

न्यूज डेस्क: 10 फरवरी से बैंगलुरु में आयोजित होने वाले एयरो इंडिया शो (Aero India 2025) में रूस का अत्याधुनिक स्टेल्थ फाइटर जेट सुखोई-57 (Sukhoi Su-57) पहली बार भारतीय आसमान में उड़ान भरेगा। यह विमान केवल एक उन्नत तकनीक का उदाहरण नहीं है, बल्कि इसमें जो विशेषताएँ हैं, वे भारत के रक्षा क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण बदलाव साबित हो सकती हैं।

सुखोई-57 की खासियत

सुखोई-57, रूस का एक पांचवीं पीढ़ी का स्टेल्थ फाइटर जेट है, जिसे खासतौर पर आधुनिक युद्ध की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया गया है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह अपने स्टेल्थ तकनीक के कारण दुश्मन के रडारों से अदृश्य हो जाता है, यानी रडार तरंगों से यह विमान पूरी तरह से बच निकलता है। इस तकनीक की मदद से यह जेट दुश्मन की आंखों से छिपा रहकर मिशन को पूरा कर सकता है। इसके अलावा, इस विमान में अत्याधुनिक एवियोनिक्स, मल्टी-रोल लड़ाई क्षमताएं, और सुपरसोनिक क्रूज़ क्षमता जैसी विशेषताएँ शामिल हैं।

एयरो इंडिया 2025 में सुखोई-57 की प्रदर्शनी

सुखोई-57 का प्रदर्शन भारतीय एयरोस्पेस और डिफेंस क्षेत्र में बड़ा आकर्षण होगा। भारत की वायु सेना की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए इस विमान का परीक्षण और प्रदर्शनी कई मायनों में महत्वपूर्ण साबित होगी। एयरो इंडिया शो, जो एशिया का सबसे बड़ा एयर शो है, में यह विमान पहली बार भारत में प्रदर्शित होगा। यहां पर भारतीय वायुसेना के अधिकारी और डिफेंस विशेषज्ञ इसे देखकर इसकी क्षमताओं का मूल्यांकन करेंगे।

रूस से भारत को ज्वाइंट प्रोडक्शन का प्रस्ताव

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी इस साल भारत यात्रा पर आने वाले हैं। पुतिन की इस यात्रा के दौरान रूस ने भारत को सुखोई-57 के ज्वाइंट प्रोडक्शन का प्रस्ताव भी दिया है। रूस का यह प्रस्ताव भारतीय रक्षा क्षेत्र के लिए एक अहम अवसर हो सकता है, खासकर जब भारत अपनी आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़े कदम उठा रहा है। भारतीय वायुसेना के लिए एक ऐसा स्टेल्थ फाइटर जेट जो रडार की पकड़ में न आए, उसकी जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी, और सुखोई-57 इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।

भारतीय वायुसेना और रक्षा क्षेत्र के लिए फायदे

सुखोई-57 की पेशकश भारतीय वायुसेना को एक नई ताकत देने के साथ-साथ इसे वायु रक्षा के क्षेत्र में एक नया आयाम भी दे सकती है। इसके ज्वाइंट प्रोडक्शन से भारत को न केवल तकनीकी विकास का अवसर मिलेगा, बल्कि यह आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक और कदम हो सकता है। इसके अलावा, इससे भारत-रूस रक्षा संबंधों में भी और मजबूती आएगी।

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