बिहार के रसोइयों और हेल्परों की स्थिति
बिहार में हर दिन 1.09 करोड़ छात्रों को मिड-डे मील उपलब्ध कराया जाता है। इसमें 90% स्कूलों में रसोइये भोजन तैयार करते हैं, जबकि 10% स्कूलों में एनजीओ द्वारा भोजन की आपूर्ति की जाती है। यह योजना छात्रों को पौष्टिक भोजन देने के उद्देश्य से शुरू की गई थी, लेकिन इसके संचालन में रसोइयों और हेल्परों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है।
इन कर्मियों की मेहनत और समर्पण के बावजूद, 2020 के बाद से उनके मानदेय में कोई वृद्धि नहीं की गई थी, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था। रसोइयों और हेल्परों के लिए यह वेतन वृद्धि एक सकारात्मक कदम है, जो उनके काम की सराहना और उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने के दिशा में एक कदम है।
सरकार को भेजा गया प्रस्ताव
शिक्षा विभाग ने इस मानदेय वृद्धि और कार्य अवधि में विस्तार के लिए सरकार को प्रस्ताव भेजा है। यह प्रस्ताव पीएम पोषण प्रोग्राम अप्रूवल बोर्ड की बैठक में चर्चा के लिए भेजा गया है। यदि प्रस्ताव मंजूर हो जाता है, तो रसोइयों और हेल्परों का मासिक मानदेय 1,650 रुपये से बढ़कर 3,650 रुपये हो जाएगा, और उन्हें पूरे साल वेतन मिलेगा, यानी अब उन्हें गर्मी की छुट्टियों में भी वेतन प्राप्त होगा।
रसोइयों और हेल्परों के लिए यह कदम क्यों महत्वपूर्ण है?
रसोइयों और हेल्परों का काम केवल भोजन तैयार करना नहीं है, बल्कि उन्हें विद्यार्थियों के पौष्टिक आहार की जिम्मेदारी भी दी जाती है। वे दिनभर की मेहनत और सेवा से बच्चों को ताजगी से भरपूर भोजन मुहैया कराते हैं। पिछले कुछ वर्षों में उनके मानदेय में कोई वृद्धि नहीं हुई थी, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर दबाव बढ़ रहा था। अब राज्य सरकार का यह कदम उन्हें न सिर्फ वित्तीय मदद देगा, बल्कि उनकी मेहनत का सम्मान भी होगा।
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