क्यों जरूरी है यह मिशन?
भारत के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है, और इसके लिए एक मजबूत और भरोसेमंद निगरानी तंत्र की आवश्यकता है। LAC और LOC पर चीन और पाकिस्तान की बढ़ती सैन्य गतिविधियों के बीच, यह 52 जासूसी सैटेलाइट्स एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकते हैं। इन सैटेलाइट्स के जरिए भारत अंतरिक्ष से निगरानी कर सकेगा, जिससे किसी भी संदिग्ध गतिविधि की जानकारी समय पर प्राप्त की जा सकेगी। यह भारतीय सेना को तत्काल प्रतिक्रिया देने का अवसर देगा, और सीमा पर सुरक्षा के लिहाज से यह एक अहम बदलाव होगा।
सैटेलाइट्स की तकनीकी विशेषताएँ
भारत के 52 जासूसी सैटेलाइट्स अत्याधुनिक तकनीकी सुविधाओं से लैस होंगे। इनमें सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR), थर्मल कैमरे, इंफ्रारेड कैमरे और विजिबल कैमरे शामिल होंगे। इन तकनीकों के द्वारा पृथ्वी से उच्च गुणवत्ता वाली तस्वीरें और डेटा भेजना संभव होगा, जिससे संदिग्ध गतिविधियों की पहचान और उनका विश्लेषण करना आसान हो जाएगा।
इन सैटेलाइट्स का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि ये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) पर आधारित होंगे, जिससे वे खुद-ब-खुद संदिग्ध गतिविधियों की पहचान कर सकेंगे और सूचना भारतीय सेना तक भेजने में सक्षम होंगे। साथ ही, इन सैटेलाइट्स से प्राप्त डेटा को बहुत तेजी से प्रोसेस किया जा सकेगा, जिससे सेना के अधिकारियों को त्वरित निर्णय लेने का मौका मिलेगा।
सैटेलाइट्स की कक्षा और कार्यप्रणाली
इन 52 सैटेलाइट्स को पृथ्वी की दो प्रमुख कक्षाओं में तैनात किया जाएगा। लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) और जियोस्टेशनरी ऑर्बिट (GEO)।
लो अर्थ ऑर्बिट (LEO): यह कक्षा पृथ्वी की सतह से 160 किलोमीटर से लेकर 2,000 किलोमीटर तक होती है। यहां पर तैनात सैटेलाइट्स को संदिग्ध क्षेत्रों पर निगरानी रखने के लिए विशेष रूप से तैनात किया जाएगा। यह सैटेलाइट्स अपनी उच्चतम क्षमता पर काम करते हुए, सटीक और साफ तस्वीरें और डेटा भेजने में सक्षम होंगे।
जियोस्टेशनरी ऑर्बिट (GEO): यह कक्षा पृथ्वी से 36,000 किलोमीटर ऊपर स्थित होती है और इसमें स्थापित सैटेलाइट्स लंबे समय तक एक निश्चित स्थान पर बने रहते हैं। GEO सैटेलाइट्स का काम होगा संदिग्ध क्षेत्रों की पहले पहचान करना और फिर उन इलाकों में सक्रिय सैटेलाइट्स को भेजना, ताकि वे मामले की जांच करें।
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