यूपी के प्राइमरी शिक्षकों को अब प्रमोशन की उम्‍मीद

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के परिषदीय स्कूलों के शिक्षकों की पदोन्नति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है, और इस विवाद का हल अब शीर्ष अदालत के फैसले पर निर्भर करेगा। इस विवाद की जड़ में एक महत्वपूर्ण सवाल है कि क्या टीईटी (Teachers Eligibility Test) को पदोन्नति के लिए अनिवार्य किया जाए। सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर 20 मार्च को अगली सुनवाई करेगा, और इसके बाद उम्मीद जताई जा रही है कि उत्तर प्रदेश के परिषदीय शिक्षकों को सात साल बाद पदोन्नति मिल सकेगी।

टीईटी की अनिवार्यता: एक नया विवाद

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान टीईटी की अनिवार्यता पर बहस हो रही है। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने इस मुद्दे पर शपथपत्र दाखिल किया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि शिक्षकों की नियुक्ति और पदोन्नति को लेकर स्थिति क्या होनी चाहिए। एनसीटीई के अनुसार, 3 सितंबर 2001 से पहले नियुक्त शिक्षकों को टीईटी से राहत दी गई है। इसके अलावा, 3 सितंबर 2001 से 23 अगस्त 2010 तक और 23 अगस्त 2010 से 29 जुलाई 2011 तक नियुक्त हुए शिक्षकों को भी टीईटी से छूट दी गई है।

इस निर्णय के अनुसार, इन तीन वर्गों के शिक्षकों को सेवा में बने रहने के लिए टीईटी परीक्षा की अनिवार्यता से राहत दी गई है। इसका मतलब यह है कि अगर सुप्रीम कोर्ट इस शपथपत्र को स्वीकार करता है, तो इन शिक्षकों की पदोन्नति का रास्ता खुल जाएगा, और उन्हें टीईटी की परीक्षा पास करने की जरूरत नहीं होगी।

62,229 शिक्षकों का भविष्य

उत्तर प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में इस समय 62,229 शिक्षक ऐसे हैं, जिनकी पदोन्नति विवाद के कारण रुकी हुई है। यह संख्या बहुत बड़ी है, और इन शिक्षकों के भविष्य पर इसका गहरा असर पड़ा है। शिक्षकों की पदोन्नति में देरी का कारण न केवल उनके व्यक्तिगत करियर को प्रभावित कर रहा है, बल्कि यह शिक्षा व्यवस्था की गुणवत्ता पर भी असर डाल सकता है। अगर यह विवाद जल्दी हल नहीं होता, तो यह उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को और भी कठिनाइयों में डाल सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का प्रभाव

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर सिर्फ उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं रहेगा। इस विवाद को लेकर देशभर में भी चिंता जताई जा रही है, क्योंकि शिक्षकों की नियुक्ति और पदोन्नति के नियमों को लेकर कई अन्य राज्य भी इस स्थिति से गुजर रहे हैं। यदि सुप्रीम कोर्ट ने टीईटी को पदोन्नति के लिए अनिवार्य किया, तो इसका असर न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे देश के शिक्षक वर्ग पर पड़ेगा। वहीं, अगर कोर्ट ने इस निर्णय को कुछ नरम किया, तो इससे शिक्षकों के करियर के लिए राहत मिल सकती है।

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