प्राण नंबर: एक अहम पहचान
प्राण नंबर, जिसे परमानेंट रिटायरमेंट अकाउंट नंबर (प्राण) कहा जाता है, एक 12 अंकों का पहचान नंबर होता है जो शिक्षकों और अन्य सरकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) से जुड़ा होता है। यह न केवल सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन की प्रक्रिया को सुगम बनाता है, बल्कि इस नंबर के बिना शिक्षक पेंशन प्रणाली में शामिल नहीं हो सकते और उनका वेतन भुगतान भी रोका जा सकता है। इस नंबर के बिना, शिक्षक को ना तो वेतन मिलता है, और ना ही वे एनपीएस के लाभों का उपयोग कर पाते हैं।
प्राण नंबर के लिए संघर्ष
यहां तक कि एक लाख 90 हजार शिक्षक, जो अपनी सरकारी नौकरी को लेकर खुश थे, आज प्राण नंबर के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ऑनलाइन आवेदन करने के बाद भी कई शिक्षकों का प्राण नंबर अभी तक जारी नहीं हो पाया है, जबकि कई अन्य के आवेदन अस्वीकृत हो गए हैं। ऐसे में, वेतन में देरी हो रही हैं। बता दें की प्राण नंबर पाने के लिए, पहले तो शिक्षक को हेड मास्टर की उपस्थिति में आवेदन करना होता है, उसके बाद यह आवेदन बीओ, डीओ, डीपीओ और निदेशक शिक्षा तक पहुंचता है। इस पूरे प्रक्रिया में विभिन्न अधिकारियों से स्वीकृति मिलने की आवश्यकता होती है। जब तक सभी अधिकारी इसे मंजूरी नहीं देते, शिक्षक का वेतन रोक दिया जाता है और वह राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली में भी शामिल नहीं हो पाता।
वेतन की देरी: शिक्षकों की रोजमर्रा की समस्या
प्राण नंबर के बिना वेतन का भुगतान नहीं होने से शिक्षकों का जीवन यापन कठिन हो गया है। इन्हें जो मूलभूत सुविधाएँ मिलनी चाहिए थीं, वे उन्हें नहीं मिल रही हैं। यह स्थिति न केवल बिहार के शिक्षकों के लिए दुखद है, बल्कि यह सरकारी तंत्र के लिए भी शर्मनाक है। शिक्षा क्षेत्र को अगर सशक्त बनाना है, तो पहले इन शिक्षकों को उनका हक देना बेहद महत्वपूर्ण है।
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