यूपी के शिक्षामित्रों का मानदेय: क्या बढ़ेगा या नहीं?

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों के करीब डेढ़ लाख शिक्षामित्रों की स्थिति इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को शिक्षामित्रों का मानदेय बढ़ाने पर विचार करने के लिए कहा है, जिससे यह सवाल उठ रहा है कि क्या इस आदेश का पालन किया जाएगा या नहीं।

शिक्षामित्रों का वर्तमान मानदेय

शिक्षामित्रों का मानदेय लगभग आठ साल से स्थिर है। वर्तमान में उन्हें प्रति माह 10,000 रुपये मिल रहे हैं, जो कि उनके कार्यभार और जिम्मेदारियों के हिसाब से बेहद कम है। ऐसे में, इनकी वित्तीय स्थिति पर गहरा असर पड़ा है। इस स्थिति का परिणाम यह हुआ है कि अब तक लगभग 20,000 शिक्षामित्र अपनी नौकरी छोड़ चुके हैं।

हाईकोर्ट का आदेश और सरकार की स्थिति

इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकार के पास कुछ विकल्प हैं, लेकिन फिलहाल सरकार की ओर से मानदेय बढ़ाने को लेकर कोई ठोस कदम उठाए जाने की उम्मीद नहीं जताई जा रही। बेसिक शिक्षा और वित्त विभाग ने पहले ही इस प्रस्ताव को मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) को भेजा था, लेकिन वहां से कोई सकारात्मक जवाब नहीं आया। सरकार का रुख यह है कि जब तक मुख्यमंत्री कार्यालय से फिर से कोई प्रस्ताव नहीं मिलेगा, तब तक इस मुद्दे पर कोई निर्णय नहीं लिया जाएगा।

हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकार के विकल्प

हालांकि सरकार के पास कुछ विकल्प हैं, जिनमें से एक है हाईकोर्ट में जवाब देकर समय की मांग करना। इसके अलावा, सरकार हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील भी कर सकती है। इन दोनों ही कदमों के जरिए सरकार इस मामले को टालने की कोशिश कर सकती है।

दूसरा विकल्प यह है कि सरकार मानदेय में थोड़ी वृद्धि कर सकती है, जैसे 2,000 से 5,000 रुपये तक, लेकिन फिलहाल इस विकल्प के लागू होने की संभावना बहुत कम है। वित्तीय स्थिति और सरकारी नीति को देखते हुए यह वृद्धि बहुत सीमित और अस्थायी हो सकती है।

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