जेट इंजन बनाने वाला छठा देश होगा भारत, टेस्टिंग शुरू

नई दिल्ली: भारत अब एक नई तकनीकी उपलब्धि की ओर बढ़ रहा है, जो न केवल भारतीय रक्षा क्षेत्र के लिए, बल्कि वैश्विक मानचित्र पर भारत की ताकत को भी और अधिक उजागर करेगा। भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने हाल ही में घोषणा की है कि उसकी शाखा, गैस टर्बाइन अनुसंधान प्रतिष्ठान (GTRE), कावेरी जेट इंजन के विकास के महत्वपूर्ण चरण में प्रवेश कर चुका है। इस इंजन के एडवांस टेस्टिंग की प्रक्रिया अब शुरू हो गई है, और अगर इन परीक्षणों में सफलता मिलती है, तो भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल हो जाएगा, जो अपने लड़ाकू विमानों के लिए स्वदेशी जेट इंजन का निर्माण कर सकते हैं।

कावेरी इंजन की महत्वता

कावेरी इंजन को DRDO और GTRE द्वारा विकसित किया गया है, और यह इंजन भारतीय वायुसेना के तेजस और अन्य लड़ाकू विमानों में इस्तेमाल के लिए डिज़ाइन किया गया है। कावेरी इंजन के सफलतापूर्वक विकास के बाद, भारत न केवल अपनी रक्षा क्षमताओं को बढ़ा सकेगा, बल्कि यह जेट इंजन निर्माण के क्षेत्र में भी स्वदेशी आत्मनिर्भरता प्राप्त करेगा। वर्तमान में, जेट इंजन बनाने वाले देशों की सूची में केवल 5 देश ही शामिल हैं—अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस। अब यदि कावेरी इंजन सफल होता है, तो भारत इस सूची में छठे स्थान पर होगा।

फ्लाइट टेस्ट की प्रक्रिया

रिपोर्ट्स के अनुसार, कावेरी इंजन के फ्लाइट टेस्ट रूस की राजधानी मॉस्को में किया जा रहा हैं। रूस के स्पेशल इल्यूशिन IL-76 विमान में इस इंजन की टेस्टिंग की जा रही हैं। इस परीक्षण के दौरान इंजन को 70 घंटे तक अलग-अलग कठोर उड़ान परिस्थितियों और वातावरण में परीक्षण किया जाएगा। यह परीक्षण यह सुनिश्चित करेगा कि इंजन सभी प्रकार के उडान स्थितियों और दबावों का सामना कर सकता है, जो एक लड़ाकू विमान को सामना करना पड़ता है। इन परीक्षणों में इंजन के प्रदर्शन, स्थिरता और सुरक्षा की जांच की जाएगी, जो भविष्य में इसे स्वीकृत करने के लिए महत्वपूर्ण होगी।

स्वदेशी रक्षा आत्मनिर्भरता की ओर एक कदम

भारत का यह प्रयास 'आत्मनिर्भर भारत' और 'मेक इन इंडिया' के लक्ष्य की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है। कावेरी इंजन के विकास में भारत का निवेश और विज्ञान-प्रौद्योगिकी में प्रगति एक नई दिशा को संकेतित करता है, जिसमें भारत अब न केवल अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा कर सकेगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी तकनीकी क्षमता का प्रदर्शन कर सकेगा। यदि यह टेस्ट सफल होता है, तो यह भारतीय वायुसेना के लिए एक बड़ी सफलता होगी। इससे भारत को अपनी रक्षा आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने का अवसर मिलेगा और साथ ही, विदेशी देशों से इंजन की खरीदारी पर निर्भरता भी कम हो जाएगी।

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