1. ब्रेटन वुड्स संधि और डॉलर का वैश्विक प्रभुत्व
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, 1944 में ब्रेटन वुड्स सम्मेलन हुआ, जहां दुनिया के प्रमुख देशों ने अमेरिकी डॉलर को वैश्विक व्यापार की प्रमुख मुद्रा के रूप में स्थापित किया। इस संधि के अनुसार, अन्य मुद्राओं को डॉलर से जोड़ा गया और डॉलर की कीमत सोने से निर्धारित की गई। इसने अमेरिकी डॉलर को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था का केंद्रीय तत्व बना दिया।
2. अमेरिका की आर्थिक ताकत
अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, और इसका वित्तीय क्षेत्र भी बहुत मजबूत है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में स्थिरता, नवाचार और निवेश की बड़ी मात्रा डॉलर की शक्ति को बढ़ाते हैं। इसके अलावा, अमेरिकी सरकार का वित्तीय संकटों के समय में भी विश्वास बनाए रखना डॉलर की स्थिरता के लिए सहायक है।
3. मुद्रा आरक्षित के रूप में डॉलर का प्रयोग
वैश्विक केंद्रीय बैंक और देशों के पास अमेरिकी डॉलर सबसे प्रमुख आरक्षित मुद्रा के रूप में मौजूद है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार और वित्तीय लेन-देन में डॉलर का व्यापक रूप से उपयोग होने के कारण देशों के केंद्रीय बैंक डॉलर में रिजर्व रखते हैं। यह डॉलर की मांग और उसकी शक्ति को बनाए रखता है।
4. वैश्विक व्यापार में डॉलर का प्रमुख स्थान
वैश्विक व्यापार में अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें अमेरिकी डॉलर में निर्धारित की जाती हैं। जैसे कि तेल, सोना, और अन्य वस्त्र, जिनका व्यापार वैश्विक स्तर पर डॉलर में होता है। इस प्रकार, अमेरिकी डॉलर वैश्विक व्यापार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है और इससे डॉलर की मांग में वृद्धि होती है।
5. सुरक्षा और निवेश में डॉलर की भूमिका
अमेरिकी डॉलर को निवेशकों के लिए सुरक्षित माना जाता है, विशेष रूप से आर्थिक संकटों के दौरान। जब वैश्विक बाजार में उतार-चढ़ाव होता है, तो निवेशक अमेरिकी डॉलर की स्थिरता और सुरक्षित मूल्य के कारण इसे अपनी संपत्ति का हिस्सा मानते हैं। यह डॉलर की विश्वसनीयता को बढ़ाता है और उसे मजबूत बनाता है।
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