भारत का पीपीपी आधारित GDP: चीन से आगे बढ़ने की चुनौती!

नई दिल्ली: पीपीपी (पर्चेसिंग पावर पैरिटी) आधारित जीडीपी दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं की ताकत को मापने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। इसमें देशों की आर्थिक ताकत को उनकी मुद्रा की खरीद क्षमता के आधार पर मापा जाता है, न कि सिर्फ मुद्रा विनिमय दरों पर। यदि हम 1980 से लेकर अब तक भारत और चीन की पीपीपी आधारित जीडीपी का अध्ययन करें, तो यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि कैसे दोनों देशों ने अपने-अपने आर्थिक रास्तों पर महत्वपूर्ण प्रगति की है।

1980 में स्थिति

1980 में जब हम पीपीपी आधारित जीडीपी के आंकड़ों को देखते हैं, तो हमें पता चलता है कि अमेरिका का दबदबा था। उस समय अमेरिका की हिस्सेदारी 21.58 फीसदी थी, जबकि चीन की हिस्सेदारी केवल 2.05 फीसदी थी। भारत की हिस्सेदारी 2.77 फीसदी थी, जो चीन से कहीं अधिक थी। इसका मतलब यह था कि भारत उस समय चीन से आर्थिक रूप से कहीं आगे था।

1990 के दशक में बदलाव

1990 में दुनिया में कुछ बड़ा बदलाव आया। भारत की हिस्सेदारी बढ़कर 3.47 फीसदी हो गई, जबकि चीन 3.63 फीसदी पर पहुंच गया। यह समय था जब चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को खोला और उसने विभिन्न सुधारों के माध्यम से अपने विकास की गति को तेज किया। भारत ने भी 1991 में आर्थिक सुधारों की शुरुआत की, लेकिन चीन ने एक कदम आगे बढ़ते हुए अपने औद्योगिकीकरण और निर्यात क्षेत्र में तेजी से विकास किया।

2000 में चीन की बढ़त

साल 2000 तक आते-आते, चीन की हिस्सेदारी पीपीपी जीडीपी में 6.55 फीसदी तक पहुंच गई, जबकि भारत की हिस्सेदारी बढ़कर 4 फीसदी ही हो पाई। चीन ने अपने बुनियादी ढांचे, मैन्युफैक्चरिंग और निर्यात के क्षेत्रों में तेजी से विकास किया, जिससे उसकी आर्थिक ताकत में जबरदस्त वृद्धि हुई। भारत ने अपनी सेवा क्षेत्र को बढ़ावा दिया, लेकिन चीन की तुलना में औद्योगिक विकास और निर्यात क्षेत्र में कम सफलता मिली।

2010 में चीन की भारी बढ़त

2010 तक आते-आते, चीन की हिस्सेदारी 12.55 फीसदी तक पहुंच गई थी, जबकि भारत की हिस्सेदारी बढ़कर 5.39 फीसदी हो पाई। इस दौरान चीन ने न केवल अपनी आंतरिक उत्पादन क्षमता को बढ़ाया बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भी अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई। इसके विपरीत, भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र और सूचना प्रौद्योगिकी (IT) को बढ़ावा दिया, लेकिन चीन के मुकाबले उसे कम सफलता मिली।

2020 में चीन का अद्वितीय मुकाम

2020 तक, चीन ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भी पीछे छोड़ दिया था। चीन की पीपीपी आधारित जीडीपी हिस्सेदारी 18.36 फीसदी तक पहुंच गई, जबकि अमेरिका की हिस्सेदारी घटकर 15.35 फीसदी रह गई। यह चीन की अप्रत्याशित वृद्धि और वैश्विक आर्थिक राजनीति में उसकी बढ़ती भूमिका का संकेत था। वहीं भारत की हिस्सेदारी 7.48 फीसदी तक पहुंची, जो एक सकारात्मक संकेत था लेकिन चीन की बढ़त के मुकाबले बहुत कम था।

भारत के लिए अब क्या है बड़ी चुनौती?

भारत की बढ़ती हिस्सेदारी को देखकर यह कहा जा सकता है कि भारत ने अपनी आर्थ‍िक स्थिति को मजबूत किया है, लेकिन चीन के मुकाबले उसे अभी भी लंबा रास्ता तय करना है। भारत को अपनी औद्योगिक और उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए ज्यादा प्रयास करने होंगे, साथ ही उसे अपनी निर्यात नीति को सुधारने और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा।

भारत के सामने यह चुनौती है कि वह चीन से आगे बढ़े और अपनी पीपीपी आधारित जीडीपी हिस्सेदारी में और सुधार लाए। इसके लिए भारत को बुनियादी ढांचे में सुधार, औद्योगिकीकरण को बढ़ावा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देना होगा। इसके अलावा, भारत को अपनी शिक्षा और कौशल विकास प्रणाली को भी मजबूत करना होगा, ताकि उसकी युवा शक्ति का बेहतर उपयोग हो सके।

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