केंद्र सरकार की बड़ी घोषणा! कर्मचारियों को क्या क्या फायदे!

नई दिल्ली। केंद्र सरकार द्वारा घोषित नए लेबर कोड को भारत के श्रम कानूनों में एक ऐतिहासिक बदलाव माना जा रहा है। वर्षों पुराने और बिखरे हुए 29 श्रम कानूनों को समेटकर सरकार ने चार व्यापक लेबर कोड तैयार किए हैं। इनका मकसद एक तरफ कर्मचारियों के अधिकारों को मजबूत करना है, तो दूसरी ओर उद्योगों और नियोक्ताओं के लिए नियमों को सरल बनाना।

चार लेबर कोड क्या हैं?

सरकार ने जिन चार कोड को अधिसूचित किया है, उनमें शामिल हैं—

1 .वेतन संहिता

2 .औद्योगिक संबंध संहिता 

3 .सामाजिक सुरक्षा संहिता

4 .व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य परिस्थितियां संहिता

इन कोड्स का असर संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों पर पड़ेगा और अनुमान है कि इससे करोड़ों श्रमिकों की कार्य स्थितियों में सुधार होगा।

कर्मचारियों को मिलने वाले प्रमुख फायदे

नए लेबर कोड में कई ऐसे प्रावधान जोड़े गए हैं जो सीधे तौर पर कर्मचारियों के हित में हैं। सबसे बड़ी राहत ग्रेच्युटी को लेकर है। अब कर्मचारियों को ग्रेच्युटी पाने के लिए 5 साल तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा, बल्कि एक साल की सेवा के बाद भी इसका लाभ मिल सकता है।

इसके अलावा न्यूनतम वेतन को लेकर स्पष्ट नियम बनाए गए हैं, ताकि सभी क्षेत्रों में मजदूरी का एक बुनियादी मानक तय हो सके। महिला कर्मचारियों की सुरक्षा, काम के सुरक्षित हालात, स्वास्थ्य सुविधाएं और सामाजिक सुरक्षा को भी नए कानून में खास महत्व दिया गया है।

चार दिन काम और तीन दिन छुट्टी का सवाल

नए लेबर कोड को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा चार दिन के वर्क कल्चर को लेकर हो रही है। दुनिया के कई देशों में पहले से ही यह व्यवस्था लागू है, जहां कर्मचारी सप्ताह में चार दिन काम करते हैं और तीन दिन की छुट्टी पाते हैं।

लेबर मिनिस्ट्री के अनुसार, नया लेबर कोड इस बात की अनुमति देता है कि यदि कोई कर्मचारी रोजाना 12 घंटे काम करता है, तो वह सप्ताह में केवल चार दिन काम कर सकता है। इस स्थिति में बाकी तीन दिन साप्ताहिक अवकाश के रूप में गिने जाएंगे। हालांकि यह अनिवार्य नहीं है, बल्कि नियोक्ता और कर्मचारी के बीच आपसी सहमति पर आधारित होगा।

क्या यह व्यवस्था सभी पर लागू होगी?

यह समझना जरूरी है कि चार दिन का वर्क कल्चर कोई बाध्यता नहीं है। कंपनियां और संस्थान अपनी जरूरत और कार्य प्रकृति के अनुसार काम के घंटे तय कर सकते हैं। यानी कोई संस्था चाहे तो पहले की तरह छह दिन या पांच दिन का वर्क मॉडल भी अपना सकती है।

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