नए निर्देशों के मुख्य बिंदु:
जमीन की प्रकृति का निर्धारण: अब जमीन की प्रकृति का निर्धारण वर्तमान स्थिति के आधार पर किया जाएगा, न कि 100 साल पुराने खतियान के आधार पर। इससे उन जमीनों में होने वाले विवादों की संभावना कम होगी, जिनका 100 साल पहले का खतियान या रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। यह निर्णय किसानों और जमीन मालिकों के लिए एक बड़ी राहत प्रदान करेगा, क्योंकि पुराने दस्तावेजों के आधार पर भूमि की श्रेणी निर्धारण में अक्सर अस्पष्टता और भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती थी।
फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी: अधिग्रहण की प्रक्रिया के दौरान संबंधित भूमि की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी कराई जाएगी। यह कदम भूमि मालिकों और सरकार दोनों के लिए सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण उपाय होगा, ताकि किसी भी प्रकार के अनावश्यक विवाद से बचा जा सके। इससे भूमि अधिग्रहण की पारदर्शिता बढ़ेगी और विवादों का निवारण संभव हो सकेगा।
निबंधन विभाग द्वारा अद्यतन वर्गीकरण: निबंधन विभाग को निर्देश दिया गया है कि वह हर तीन साल में भूमि का वर्गीकरण अद्यतन करे। इसके तहत जमीन के प्रकार और वर्गीकरण को समय-समय पर अपडेट किया जाएगा ताकि भूमि की वास्तविक स्थिति और उपयोगिता को सही तरीके से पहचाना जा सके। इस कदम से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि भूमि के मूल्य निर्धारण के समय किसी भी प्रकार की गलतफहमी न हो।
जमीन की दर के विवाद का समाधान: जमीन की दर को लेकर अक्सर विवाद उठते हैं, खासकर जब भूमि का मूल्य तय करने में भिन्नताएँ होती हैं। इस नए निर्देश में निबंधन विभाग द्वारा भूमि के न्यूनतम मूल्य निर्धारण का तरीका भी स्पष्ट किया गया है। इससे भूमि के मूल्य पर होने वाले विवादों का समाधान किया जाएगा और सरकार के साथ भूमि मालिकों के बीच किसी भी प्रकार के विवाद को समाप्त किया जाएगा।
अधिग्रहण प्रक्रिया में सुधार: बिहार सरकार का यह कदम जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया में सुधार लाएगा और भविष्य में होने वाले विवादों से बचने में मदद करेगा। खासकर उन मामलों में जहां भूमि की प्रकृति, वर्गीकरण और मूल्य निर्धारण के मुद्दों पर विवाद उत्पन्न होते थे। अब भूमि के मूल्य का निर्धारण न केवल वर्तमान स्थिति के आधार पर होगा, बल्कि भूमि के वास्तविक उपयोग और उसकी श्रेणी को भी ध्यान में रखा जाएगा, जिससे निष्पक्ष और सही मूल्य निर्धारण संभव होगा।
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