बता दें की इस समस्या को लेकर लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) ने एक बड़ी पहल शुरू की है। अब प्रॉपर्टी डीलर और बिल्डर्स ग्रीन बेल्ट की ज़मीन को बेचने के लिए ग्राहकों को गुमराह नहीं कर पाएंगे, क्योंकि इस ज़मीन का पूरा ब्योरा रजिस्ट्री के समय साफ्टवेयर में दर्ज होगा। रजिस्ट्री प्रक्रिया में ग्रीन बेल्ट की ज़मीन के बारे में गांव और खसरा नंबर सहित सभी जानकारी निबंधन कार्यालय के साफ्टवेयर में पहले से ही उपलब्ध होगी, जिससे ग्रीन बेल्ट पर होने वाली अनधिकृत बिक्री पर लगाम लगेगी।
एलडीए की इस पहल से यह सुनिश्चित होगा कि ग्रीन बेल्ट की ज़मीन पर कोई भी निर्माण कार्य या बिक्री बिना उचित अनुमति के नहीं की जा सकेगी। न केवल रजिस्ट्री के समय इस जानकारी का खुलासा होगा, बल्कि एलडीए की टीम ग्रीन बेल्ट से जुड़ी सभी 307 गांवों की ज़मीन का ब्योरा तैयार कर रही है। यह कार्य आगामी तीन महीनों में पूरा होने की उम्मीद है।
आवश्यकता और मांग का संतुलन:
लखनऊ शहर में बढ़ती आबादी और आवासीय योजनाओं की सीमित उपलब्धता के कारण लोग प्रॉपर्टी डीलरों से जमीन खरीदते हैं। यह वह स्थिति है, जहां अक्सर लोग ग्रीन बेल्ट की ज़मीन को भी रहने के लिए खरीद लेते हैं, जो बाद में कानूनी तौर पर विवादित साबित होती है। कई बार ऐसे प्रॉपर्टी डीलर ग्रीन बेल्ट की ज़मीन पर मकान बनाकर बेच देते हैं, और जब खरीदारों को यह पता चलता है, तब तक काफी देर हो चुकी होती है। इस प्रकार के फर्जीवाड़े से लोगों का पैसा डूब जाता है और उन्हें कानूनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
एलडीए और आवास विकास की आवासीय योजनाएं इस समय लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं, जिसके चलते यह मांग पैदा हो रही है कि लोग प्रॉपर्टी डीलरों के पास जाएं। हालांकि, अगर एलडीए द्वारा दी गई योजनाओं और नीतियों को सही तरीके से लागू किया जाए तो भविष्य में ऐसे फर्जीवाड़े पर पूरी तरह से रोक लगाई जा सकती है।
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