एक रिपोर्ट के मुताबिक कावेरी 2.0 इंजन का परीक्षण वर्तमान में रूस के मास्को के पास स्थित ग्रोमोव फ्लाइट रिसर्च इंस्टीट्यूट में किया जा रहा है, जो भारतीय एयरोस्पेस प्रौद्योगिकी के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। कावेरी 2.0 के सफल परीक्षणों से भारत को रक्षा उत्पादों के वैश्विक बाजार में भी अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर मिलेगा। कावेरी 2.0 इंजन न केवल भारतीय वायुसेना के लिए, बल्कि भारतीय रक्षा उद्योग के लिए भी एक नई दिशा और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने का अवसर प्रदान करेगा।
कावेरी 2.0 जेट इंजन का महत्व:
कावेरी 2.0 जेट इंजन भारतीय विकास के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक पर आधारित है। इससे भारत को अपने लड़ाकू विमानों और अन्य सैन्य विमानों के लिए स्वदेशी इंजन विकसित करने में मदद मिलेगी, जिससे विदेशी आयात पर निर्भरता कम होगी और रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक ठोस कदम होगा। यह इंजन भारत के ड्रोन, जेट और अन्य सैन्य विमानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, जिससे भारतीय वायुसेना और भारतीय रक्षा क्षेत्र को अत्यधिक लाभ होगा।
उड़ान परीक्षण और ग्राउंड ट्रायल्स:
हाल ही में कावेरी 2.0 इंजन का इनफ्लाइट परीक्षण रूस में और भारत में गहन ग्राउंड ट्रायल्स के बाद मंजूरी दी गई है। रूस में केंद्रीय विमानन मोटर संस्थान (CIAM) में किए गए हाई एल्टीट्यूड परीक्षणों में इंजन की क्षमता का परीक्षण किया गया, जिसमें 13,000 मीटर (42,651 फीट) की ऊंचाई पर इंजन की कार्यक्षमता का सिमुलेशन किया गया था। इन परीक्षणों के माध्यम से इंजन की उच्चतम ऊंचाई पर काम करने की क्षमता की जांच की गई है, जो सैन्य विमानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
भारत में ग्राउंड ट्रायल्स के बाद, रूस में इस इंजन का परीक्षण किया गया। इसके बाद अब कावेरी 2.0 को उड़ान के दौरान परीक्षण की अनुमति मिल गई है। यह परीक्षण ग्रोमोव फ्लाइट रिसर्च इंस्टीट्यूट पर पूरी तरह से संशोधित IL-76 विमान पर किए जा रहे हैं। यह सफलता भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, जो इतने सालों की मेहनत के बाद इस मुकाम तक पहुंचे हैं।
परीक्षण के बाद आगे का रास्ता:
कावेरी 2.0 जेट इंजन के सफल परीक्षण से भारतीय रक्षा क्षेत्र को एक नई दिशा मिलेगी और 2025-26 तक इस इंजन का सीमित उत्पादन शुरू किया जायेगा। यदि यह परीक्षण पूरी तरह से सफल होते हैं, तो यह भारत को जेट इंजन प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक ठोस कदम होगा।
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