1. गर्भवती महिलाओं के लिए आर्थिक मदद
मातृत्व शिशु और बालिका मदद योजना के तहत, गर्भवती महिलाओं को 25,000 रुपए की आर्थिक सहायता दी जाएगी। यह राशि महिलाओं के स्वास्थ्य और गर्भावस्था की देखभाल के लिए दी जाती है, जिससे वे बेहतर चिकित्सा सेवाओं का लाभ उठा सकें। इसके साथ ही, महिला के पहले और दूसरे बच्चे के लिए भी 25,000 रुपए की सहायता राशि मिलेगी। यह पहल उन परिवारों के लिए बहुत फायदेमंद है, जो आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं और गर्भावस्था के दौरान मेडिकल खर्चों को पूरा करने में कठिनाई महसूस करते हैं।
2. श्रमिकों के लिए आर्थिक लाभ
योजना के अंतर्गत, श्रमिकों को भी विभिन्न प्रकार की आर्थिक मदद दी जाती है। पंजीकृत पुरुष श्रमिकों को एकमुश्त 6,000 रुपए की मदद दी जाती है। इसके अलावा, महिला श्रमिकों को संस्थागत प्रसव के दौरान चिकित्सा बोनस के रूप में 3 माह के न्यूनतम वेतन के बराबर राशि 1,000 रुपए दी जाती है। यह सहायता महिला श्रमिकों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि प्रसव के समय उन्हें न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक और आर्थिक समर्थन की भी आवश्यकता होती है।
3. शिशु की देखभाल में सहायता
इस योजना के तहत, नवजात शिशुओं को भी वित्तीय मदद दी जाती है। अगर शिशु लड़का होता है तो 20,000 रुपए की सहायता दी जाएगी, वहीं अगर शिशु लड़की होती है तो उसे 25,000 रुपए की राशि दी जाएगी। इस योजना का उद्देश्य लड़कियों को विशेष रूप से सहायता प्रदान करना है, क्योंकि समाज में अक्सर लड़कियों को उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और समग्र विकास में कम प्राथमिकता दी जाती है।
4. बालिका मदद योजना
बालिका मदद योजना के तहत, पहली या दूसरी बालिका संतान के जन्म पर 25,000 रुपए की आर्थिक मदद दी जाएगी। यह राशि बालिका के स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इसके अलावा, यदि बालिका जन्म से दिव्यांग होती है, तो उसे 50,000 रुपए की सावधि जमा दी जाएगी, जो 18 साल की उम्र तक अविवाहित रहने पर उसके नाम पर रखी जाएगी। यह कदम दिव्यांग बच्चों के लिए भविष्य को सुरक्षित बनाने की दिशा में एक सकारात्मक पहल है।
5. कुल मिलाकर योजना का प्रभाव
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इस योजना की शुरुआत से प्रदेश में महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य और कल्याण को लेकर एक नई उम्मीद जागी है। खासकर आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए यह योजना किसी वरदान से कम नहीं है। इससे महिलाओं को गर्भावस्था, प्रसव और शिशु के पालन-पोषण के दौरान जरूरी आर्थिक सहायता मिलती है, जिससे उनका मानसिक दबाव कम होता है और वे अपने बच्चों को बेहतर तरीके से पालने में सक्षम होती हैं।
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