शिक्षामित्रों की स्थिति और उनकी मांग
शिक्षामित्रों की स्थिति पिछले कई सालों से स्थिर बनी हुई है। 2017 से, इन शिक्षामित्रों को 10,000 रुपये प्रति माह के मानदेय पर काम करने को मजबूर किया गया है। उनकी मांग है कि उनका मानदेय बढ़ाया जाए ताकि वे अपनी बढ़ती हुई ज़रूरतों को पूरा कर सकें। वर्ष 2022-23 के बजट में सरकार ने मानदेय वृद्धि का प्रस्ताव रखा था, लेकिन बाद में इसे रोक दिया गया। इसके बाद शिक्षामित्रों ने कई बार अपनी मांगों को लेकर आंदोलन किया, लेकिन सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।
हाईकोर्ट का आदेश और सरकार के अधिकार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह शिक्षामित्रों के मानदेय में वृद्धि पर विचार करे। हालांकि, कोर्ट का आदेश केवल इस पर विचार करने का था, और यह पूरी तरह से राज्य सरकार के विवेकाधिकार में है कि वह इस पर निर्णय ले या नहीं।
सरकार के पास इस मामले में तीन प्रमुख विकल्प हैं:
1 .समय की मांग करना: राज्य सरकार मानदेय वृद्धि को लेकर हाईकोर्ट से और समय मांग सकती है ताकि वह इस मुद्दे पर गहनता से विचार कर सके।
2 .सुप्रीम कोर्ट में चुनौती: राज्य सरकार हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकती है, हालांकि इस कदम से मामले की सुनवाई और लंबी हो सकती है।
3 .मानदेय में वृद्धि: राज्य सरकार मानदेय में 2,000 से 5,000 रुपये तक की वृद्धि कर सकती है, लेकिन इसके लिए सरकार को बजट की मंजूरी और आवश्यक निर्णयों को लागू करने की प्रक्रिया पूरी करनी होगी। हालांकि, इस विकल्प के लागू होने के चांस बहुत कम हैं।
राजनीतिक दृष्टिकोण और 2026 विधानसभा चुनाव
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तर प्रदेश की सरकार 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले शिक्षामित्रों के मानदेय में कुछ वृद्धि कर सकती है। यह कदम चुनावी लाभ लेने के लिए भी हो सकता है, क्योंकि शिक्षामित्रों के समर्थन से सरकार को एक बड़ा जनाधार मिल सकता है। हालांकि, शिक्षामित्रों का मानना है कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकार अब उनकी मांगों पर गंभीरता से विचार करेगी।
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